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मो.मा
है। बहुरि उपशम श्रेणीकों सन्मुख होते ससगुणस्थानविषै क्षयोपशमसम्यवत्वतें जो उपशम प्रकाशा
सम्यक्त्व होय, ताका नाम द्वितीयोपशमसम्यक्त्व है। यहां करणकरि तीन ही प्रकृतीनिका उपशम हो है । जाते यात तीनहीकी सत्ता पाइए यहां भी अंतःकरणविधानते वा उपशमविधानते तिनिके उदयका अभाव करै है । सो ही उपशम है । सो यह द्वितीयोपशम सम्य
क्व सप्तमादि ग्यारवां गुणस्थानपर्यंत हो है। पड़ता हुवा कोई छठे पांचवें चौथै गुणस्थान | भी रहै है, ऐसा जानना । ऐसें उपशम सम्यक्त्व दोय प्रकार है । सो यह सम्यक्त्व वर्तमानकालविषै क्षायिकवत् निर्मल है। याका प्रतिपक्षी कर्मकी सत्ता पाइए है, तातै अन्तर्मुहूर्त कालमात्र यह सम्यक्त्व रहै है । पीछे दर्शनमोहका उदय आवै है, ऐसा जानना । ऐसैं उपशम सम्यक्त्वका स्वरूप कह्या । बहुरि जहां दर्शनमोहकी तीन प्रकृतिनिविषै सम्यक्तवमोहनीका उदय पाइए है,ऐसी दशा जहां होय, सो क्षयोपशम है । जाते समल तत्वार्थ श्रद्धान होय, सो क्षयोपशम सम्यक्त है । अन्य दोय प्रकारका उदय न होय, तहां क्षयोपशम सम्यक्त्व हो है, सो उपशम सम्यक्त्वका काल पूर्ण भए यह सम्यक्त्व हो है । वा सादि | मिथ्यादृष्टीकै मिथ्यात्वगुणस्थानते वा मिश्रगुणस्थामतें भी याकी प्राप्ति हो है । क्षयोपशम || कहा-सो कहिए है,
दर्शनमोहकी तीन प्रकृतीनिविषै जो मिथ्यात्वका अनुभाग है, ताके अनंत भाग || ५१६
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