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________________ प्रकाश मो.मा. मिश्रमोहिनीका है । ताके अनंतवै भाग सम्यकत्वमोहिनीका है। सो इनविष सम्यक्त्वमोहिनी प्रकृति देशघातिक है । याका उदय होते भी सम्यक्त्वका घात न होय । किंचित् मलीनता करे, मूलघात न कर सके। ताहीका नाम देशघाति है । सो जहां मिथ्यात्व वा मिश्रमिथ्यास्वका वर्तमानकालविवे उदय भावनेयोग्य निषेक तिनका उदय हुए बिना ही निर्जरा होना, सो तो क्षय जानना । और इनहीका आगामिकालविष उदय आवने योग्य निषेकनिकी सत्ता पाइए है, सो ही उपशम है । और सम्यक्त्वमोहिनीका उदय पाइए है, ऐसी दशा जहां होय | सो क्षयोपशम है ताते समलतत्त्वार्थश्रद्धान होय, सो क्षयोपशम सम्यक्त्व है। यहां जो मल लागै है, ताका तारतम्य स्वरूप तो केवली जानें है, उदाहरण दिखाने के अर्थि चलमलिनअगाढ़पना कह्या है । तहां व्यवहारमात्र देवादिककी प्रतीति लौ होय, परंतु अरहंतदेवाद्विवि.। पै यह मेरा है, यह अन्यका है, इत्यादि भाव सो चलपना है । शंकादि मल लागै है, सो मलिनपना है । यह शांतिनाथ शांतिका कर्ता है, इत्यादि भाव सो अगाढ़पना है । सो ऐसा । उदाहरण व्यवहारमात्र दिखाए । परंतु नियमरूप नाहीं । क्षयोपशम सम्यक्त्वविषै जो नियमरूप कोई मल लागै है, सो केवली जाने है । इतना जानना-याके तत्वार्थश्रद्धानविषे कोई।। प्रकार करि समलपनो हो है । तातें यह सम्यक्त्व निर्मल नाहीं है। इस क्षयोपशम सम्यक्त्वका एक ही प्रकार है । याविषै कछु भेद नाहीं है। इतना विशेष है-जो क्षायिक सम्य-111५१७ 10@ogopogogodeoroopcfOOHORMOolcfOOOG00196/oo0000000000000sGlantati00422800186foolDEookG
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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