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________________ मो.मा. प्रकाश Re0%20foooooo +0530680010330000010600/SHOOctoral+200-36000-100000*360 तो एक मिथ्यात्वप्रकृतिहींका उपशम होय हैं। जाते. याकै मिश्रमोहिनी अर सम्यक्त्वमोहिनीकी सत्ता है नाहीं। जब जीव उपशमसम्यक्त्वको प्राप्त होय, तिस सम्यक्त्वके कालविषै मिथ्यात्वके परमाणनिकों मिश्रमोहिनीरूप वा सम्यक्त्वमोहिनीरूप परिणमात्रै है, तब तीन प्रकृतीनकी सत्ता हो है । तातै अनादि मिथ्यादृष्टीकै एक मिथ्यात्वप्रकृतिको ही सत्ता है। ति- | सहीका उपशम हो है । बहुरि सादिमिथ्यादृष्टीकै कारकै तीन प्रकृतीनिकी सत्ता है, काहूकै ।। एकहीकी सत्ता है । जाकै सम्यक्त्वकालविषै तीनकी सत्ता भई थी, सो सत्ता पाइए ताके तीनकी सत्ता है । अर जाकै मिश्रमोहिनी सम्यक्त्वमोहिनीकी उद्वेलना होय गई होय, उनके परमाणु मिथ्यात्वरूप परिणम गए होय, ताकै एक मिथ्यात्वकी सत्ता है । तातै सादि मिथ्यादृष्टीकै तीन प्रकृतीनिका वा एक प्रकृतीका उपशम हो है । उपशमकहा ? सो कहिएहैं-अनिवृत्तिकरणविर्षे किया अंतरकरणविधानते जे सम्यक्त्वकालविणे उदय आवनेयोग्य निषेक थे, तिनिका तो अभाव किया, तिनिके परमाणु अन्यकालविषै. उदय भावने- 1 योग्य निषेकरूप किए । बहुरि अनिवृत्तकरणहीवियु किया उपशमविधानते जे तिसकालविष उदय आवनेयोग्य निषेक, ते उदीरणारूप होय इस कालविषै उदय न आ सके, ऐसे किए । ऐसें जहां सत्ता तौ पाइए, अर उदय न. पाइए, ताका नाम उपशम है । सो यह मिथ्यात्वतै भया प्रथमोपशम सम्यक्त्व, सो चतुर्थादि सप्तमगुणस्थानपर्यंत पाइए 1. 000000000000foogopAIB800000002onpcircadoph00to%20aorado-OF06800ctok080010000-00ora ५१५
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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