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मो.मा. प्रकाश
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गति जाकी, ऐसा पदार्थनिका समूह ताकी भई है उपलब्धि श्रद्धानरूप परणति जाकै, ऐसा ।। | करणानुयोगका ज्ञानी भया, ताके बीजदृष्टी हो है । यह बीजसम्यक्त्व जानना । बहुरि पदार्थनिकों संक्षेपपनेते जानकरि जो श्रद्धान भया, सो भली संक्षेपदृष्टि है। यह संक्षेपसम्यक्त जानना । जो द्वादशांगवानीकों सुन कीन्हीं जो रुचि श्रद्धान, ताहि विस्तारदृष्टी हे भव्य तू।। | जानि । यह विस्तारसम्यक्त्व है । बहुरि जैनशास्त्रके वचनविना कोई अर्थका निमित्ततै भई ।।
सो अर्थदृष्टी है । यह अर्थसम्यक्त्व जानना । बहुरि अंग पर अंगबाह्यसहित जैनशास्त्र ।। | ताकौं अवगाह करि जो निपजी, सो अवगाढ़दृष्टि है । यह अवगाढ़सम्यक्त्व जानना । ऐसें ।।
आठ भेद तो कारण अपेक्षा किए हैं । बहुरि श्रुतकेवलीके जो तन्वश्रद्धान है, ताको अवगाढ़सम्यक्त्व कहिए हैं केवलज्ञानीके जो तत्वश्रद्धान है, ताकौं परमावगाढसम्यक्त्व कहिप है। ऐसें टोय भेद ज्ञानका सहकारीपनाकी अपेक्षा किए हैं । या प्रकार दशभेद सम्यक्त्वके किए। तहां सर्वत्र सम्यक्त्वका स्वरूप तत्वार्थ श्रद्धान ही जानना । बहुरि सम्यक्त्वके तीन भेद किए हैं । १ औपशमिक, २ क्षायोपशमिक, ३ क्षायिक । ए तीन भेद दर्शनमोहकी अपेक्षा किए हैं। तहां उपशमसम्यक्त्वके दोय भेद हैं । एक प्रथमोपशम सम्यक्त्व, दूसरा द्विती- | | योपशम सम्यक्स्व । तहां मिथ्यात्वगुणस्थानविणे करणकरि दर्शनमोहकों उपशमाय सम्यक्त्व उपजै, ताकौं प्रथमोपशम सम्यक्त्व कहिए है। तहां इतना विशेष है-अनादि मिथ्यादृष्टीके ।। ५१४
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