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________________ मो.मा. काश श्रद्धान गर्भित हो है। सो तो तुच्छबुद्धीनिकों भी भासे । बहुरि अन्य खचणगतिविषे तत्त्वार्थश्रद्धानका गर्भितपनी विशेष बुद्धिमान होंग, तिनहींकों भासे । तुच्छ बुद्धीनिकों न भासे । तातें तत्वार्थ प्रधान लक्षणों मुख्य किया है । अथवा मिथ्यादृष्टीके आभास मात्र ए होय। तां तत्वार्थनिका विचार तो शीघ्रपनै विपरीताभिनिवेश दूर करनेकौं कारण हो है। अन्य लक्षण शीघ्र कारण नाहीं होंय । वा किरीताभिनिवेशका भी कारण होय जाय । ताते यहां सर्व प्रकार प्रसिद्ध जानि विपरीताभिनिवेश रहित जीवादि तस्त्रार्थनिका श्रद्धान सो ही सम्वक्त्वका लक्षण है, ऐसा निर्देश किया। ऐसे लक्षणनिर्देशका निरूपण किया । ऐसा लक्षण जिस आत्माका स्वभावविषै पाइये है। सो. ही। सम्यक्त्वी जानना। अब इस सम्यक्त्वके भेद दिखाइए है, तहां प्रथम निश्चय व्यवहारका भेद दिखाइये। है,-विपरीताभिनिवेशरहित श्रद्धानरूप आत्मपरिणाम सो तो निश्चय सम्यक्त्व है। जाते यह ! सत्यार्थ सम्यक्त्वका स्वरूप है । सत्यार्थहीका नाम निश्चय है । बहुरि विपरीताभिनिवेशरहित श्रद्धानको कारणभूत श्रधान सो व्यवहार सम्यक्त्व है । जाते कारणविष कार्यका उपचार किया है । सो उपचारहीका नाम ब्यवहार है। तहां सम्यग्दृष्टी जीवकै देवगुरुधर्मादिकका सांचा. श्रद्धान है. । तिसही निमित्तते याके श्रद्धानविर्षे विपरीताभिनिवेशका अभाव Youo&00MMEN0ROSorresfood100000000015600KOROPO8000@madrasRG0000
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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