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________________ मो मा. प्रकाश कुदेवादिकते द्वेष तौ राखे, अन्य रागादि छोड़नेका उद्यम न करे, ऐसा भ्रम उपजै। बहुरि आपापरका श्रद्धानविर्षे तुच्छबुद्धीनकों यह भासै कि, आपापरका ही जानना कार्यकारी है। इसते ही सम्यक्त्व हो है। तहां आस्रवादिकका खरूप न भासे। तब मोक्षमार्ग प्रयोजनकी || सिद्धि न होय । वा आस्त्रवादिक श्रद्धान भए बिना इतना ही जाननेविर्षे संतुष्ट होय, आपकों || सम्यक्ती मान स्वच्छंद होय रागादि छोड़नेका उद्यम न करै । ऐसा भ्रम उपजै । बहुरि आत्मश्रद्धान लक्षणविषै तुच्छबुद्धीनिकों यह भासै कि, आत्माहीका विचार कार्यकारी है। इसहीत सम्यक्त्व हो हैं । तहां जीव अजीवादिकका विशेष वा आस्रवादिकका स्वरूप न भासे, तब मोक्षमार्ग प्रयोजनकी सिद्धि न होय । वा जीवादिकका विशेष वा आस्रवादिकके स्वरूपका श्रद्धान भए बिना इतने ही विचारते आपकौं सम्यक्ती मानि स्वच्छन्द होय रागादि छोड़नेका उद्यम न करे है । याके ऐसा भ्रम उपजे है । ऐसा जान इन लक्षणनिकों मुख्य न किए । बहुरि तत्त्वार्थश्रद्धान लक्षणविष जीव अजीवादिकका वा आस्रवादिकका श्रद्धान होयं । तहां || सर्वका स्वरूप नीके भासे, तब मोक्षमार्गका प्रयोजनकी सिद्धि होय । बहुरि इस श्रद्धानके भए सम्यक्त होय । परंतु यह संतुष्ट न हो है । आत्रवादिकका श्रद्धान होनेते रागादि छोड़ मोक्षका उद्यम राखे है। याके भ्रम न उपजे है । ताते तत्वार्थश्रदधान लक्षणको मुख्य किया है। अथवा तत्वार्थ श्रद्धान लक्षणविषै तो देवादिकका श्रद्धान वा आपापरकाश्रद्धान वा आत्म-11 ५०६
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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