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मो.मा. प्रकाश
नियम तो है नाहीं । कोई जीवकै कोई विपरीत कारण प्रबल बीनिमें होय जाय, तौ सन्यग्द-1 र्शनकी प्राप्ति नाहीं भी होय । परंतु मुख्यपने घने जीवनिकै तो इस ही अनुक्रमते कार्यसिद्धि || हो है । ताते इनकों ऐसे ही अंगीकार करना । जैसे पुत्रका प्रर्थी विवाहादि कारणनिकों मिलावै, पीछे घने पुरुषनिकै तौ पुत्रकी प्राप्ति होय ही है। काइकै न होय, तो नाही भी होय ।। परंतु याकों तो उपाय करना ही। तैसें सम्यक्त्वका अर्थी इन कारणनिकों मिलावे, पीछे । घने जीवनिकै तौ सम्यक्त्वकी प्राप्ति होइ ही है । काहूकै न होय, तौ नाहीं भी होय । परंतु । याकों तौ जाते कार्य बने, सोई उपाय करना । ऐसें सम्यक्त्वका लक्षण निर्देश किया। यहां ।। प्रश्न-जो सम्यक्त्वके लक्षण तो अनेक प्रकार कहे, तिनविर्षे तुम तत्त्वार्थश्रद्धान लक्षणों || मुख्य कह्या, सो कारण कहा । ताका समाधान,
तुच्छबुद्धीनको अन्य लक्षणनिविषे प्रयोजन प्रगट भासे नाही, वा भ्रम उपजै । अर इस तत्त्वार्थश्रद्धान लक्षणविर्षे प्रगट प्रयोजन भासे है, किछू भ्रम उपजै नाहीं। ताते इस लक्षण को मुख्य किया है । सोई दिखाइए है-देवगुरुधर्मका श्रद्धानविणे तुच्छबुद्धीनिकों यह भासै
अरहंतदेवादिककों मानना, औरकों न मानना । इतना ही सम्यक्त्व है। तहां जीव अजीवका A बंधमोक्षके कारणकार्यका स्वरूप न भासै, तब मोक्षमार्ग प्रयोजनकी सिद्धि न होय । वा जी-11 वादिकका श्रद्धान भए विना इस ही श्रद्धानविणे संतुष्ट होय आपकौं सम्यक्त्वी माने। एक
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