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________________ मो.मा. प्रकाश C स भावनिकरिअरहंतादिकका स्वरूप तत्वश्रद्धान भए ही जानिए है ।" तातै जाकै सांचा अरहंतादिकका श्रद्धान होय, ताकै तत्वश्रद्धान होय ही होय, ऐसा नियम जानना । या प्रकार सम्यक्त्वका लक्षण निर्देश किया। यहां प्रश्न --जो सांचा तत्वार्थदुधान वा आपापरका श्रद्धान वा आत्मश्रद्धान वा देवधर्मगुरुका श्रद्धान सम्यक्त्वका लक्षण का । बहुरि इन सर्व लक्षनिकी परस्पर एकता भी दिखाई, सो जानी । परंतु अन्य अन्य प्रकार लक्षण करनेका प्रयोजन कहा, ताका उत्तर— ये चार लक्षण कहे, तिनविषै सांची दृष्टिकरि एक लक्षण ग्रहण किए चारों लक्षणोंका ग्रहण हो है । तथापि मुख्य प्रयोजन जुदा जुदा विचारि अन्य अन्य प्रकार लक्षण कहे हैं। जहां तत्वार्थश्रद्धान लक्षण कया है, तहां तौ यह प्रयोजन है जो इन तत्वनिको पहिचान, तो | यथार्थ वस्तुके स्वरूप वा अपने हित अहितका श्रद्धधान करे तब मोक्षमार्ग विषै प्रवर्ते । बहुरि जहां आप परका भिन्न श्रधान लक्षण कह्या है, तहां तत्वार्थश्रद्धानका प्रयोजन जाकर सिद्ध होय, तिस श्रधानको मुख्य लक्षण कया है । जीव अजीवके श्रद्धधानका प्रयोजन आपापरका | भिन्न श्रद्धधान करना है । बहुरि आश्रवादिकके श्रद्धधानका प्रयोजन रागादि छोड़ना है । सो आपापरका भिन्न श्रद्धधान भए परद्रव्यविषै रागादि न करनेका श्रद्धान हो है । ऐसे तत्वार्थश्रदधानका प्रयोजन आपापरकेभिन्न श्रद्धानतै सिद्ध होना जानि इस लक्षणकों कहा है । ५०४
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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