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________________ - - - प्रकाश सह मो.मा. सम्यक्त्वविष देवादिकके श्रद्धानका नियम है । बहुरि प्रश्न-जो केई जीव अरहंतादिकका । श्रद्धान करें हैं, तिनके गुण पहचान हैं, अर उनके तत्वश्रद्धानरूप सम्यक्त्व न हो है । ताते ज के सांचा अरहंतादिकका श्रद्धान होय, ताकै तत्वश्रद्धान होय ही होय, ऐसा नियम संभवे नाहीं। ताका समाधान,___ तत्वश्रद्धान विना अरहंतादिकके छियालीसआदि गुण जाने, है, सो पयाश्रित गुण || जानना भी न हो है । जाते जीव अजीवकी जाति पहचाने बिना अरहंतादिकके आत्माश्रित गुणनिकों वा शरीराश्रित गुणनिकों भिन्न भिन्न न जानै । जो जानै, तो अपने आत्माकों परद्रव्यत्वे भिन्न कैसें न माने। तातै प्रवचनसारविष ऐसा कह्या है,-- जो जाणदि अरहंतं दव्वत्तगुणत्तपन्जयत्तेहिं । सो जाणदि अप्पाणं मोहो खलु जादि तस्स लयं ॥१॥ याका अर्थ--यह जो अरहंतकों द्रव्यत्व गुणत्व पर्यायत्वकरि जाने है, सो आत्माकों जाने है । ताका मोह विलयको प्राप्त हो है । तातें जाकै जीवादिक तत्वनिका श्रद्धान नाही, ताकै अरहंतादिकका भी सांचाश्रद्धान नाहीं । बहुरि मोचादिक तत्वनिका श्रद्धानबिना अरहंतादिकका माहा:म्य यथार्थ न जाने। लौकिक अतिशयादिककरि अरहंतका तपश्चरणादिकरि गुणका अर परजीवनिकी अहिंसादिकरि धर्मकी महिमा जाने, सो ये पर्यायाश्रत भाव हैं। बहुरि आत्माश्र +HOICE000-2000-800000000%adioopacfoojpoooooozagonackpotocoacOCATGook0600-00000pe ५०३
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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