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________________ मो.मा. प्रकाश C पहचानलिये श्रद्धान होय नाहीं । बहुरि जाकै सांचा अहंतादिकके स्वरूपका श्रद्धान होय, ताकै तत्त्वार्थ श्रद्धान होय ही होय । जातें अरहंतादिकका स्वरूप पहचानें जीव अजीव | वादिककी पहचान हो है । ऐसें इनकों परस्पर अविनाभावी जानि, कहीं अरहंतादिकके श्रद्धानौं सम्यक्त्व का है। यहां प्रश्न --जो नारकादिक जीवनिकै देवकुदेवादिकका व्यवहार नाहीं, अर तिनिके सम्यक्त्व पाइए है, तातै सम्यक्त्व होतैं अरहंतादिकका श्रद्धान होय ही होय, ऐसा नियम संभवै नाहीं । ताका समाधान, सप्त तत्स्वनिका श्रद्धानविषै अरहंतादिकका श्रद्धान गर्भित है । जाते तत्त्वश्रद्धानविषै: मोक्ष तत्त्वको सर्वोत्कृष्ट माने है । सो मोचतत्त्व तो अरहंत सिद्धका लक्षण है । जो लक्षणकों उत्कृष्ट मार्ने, सो ताकै लक्ष्यको उत्कृष्ट माने ही माने । तातै उनको भी सर्वोत्कृष्ट मान्या औरकौं न मान्या सो ही देवका श्रद्धान भया । बहुरि मोक्षका कारण संवर निर्जरा है, तातें इनको भी उत्कृष्ट माने है । सो संवर निर्जराके धारक मुख्यपनै मुनि हैं । तातें मुनिकों उत्तम मार्के हैं और न माने हैं, सोई गुस्का श्रद्धान भया । और रागादिकरहित भावका नाम अहिंसा है, ताहीको उपादेय माने है औरकों न माने है सोई धर्मका श्रद्धान भया । ऐसे तत्त्वार्थश्रद्धाविषै अरहंतदेवादिकका भी श्रद्धान गर्भित हैं. अथवा तिस निमित्ततै इनके तत्वार्थ श्रद्धान हो है, तिप्तः निमित्त अरहंतदेवादिकका भी श्रद्धान हो है । तातें: ५०२:
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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