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________________ मो.सा. प्रकाश अंगीकार करनेका पुरुषार्थ प्रगट होय । बहुरि चारित्रको धारि अपना पुरुषार्थकरि धर्मविषे परिणतिकों बधावै, तहां विशुद्धताकरि कर्मकी हीन शक्ति होय, तातै त्रिशुद्धता बधै, त.करि अधिक कर्मी शक्ति होन होय । ऐसें क्रमतें मोहका नारा करै, तब सर्वथा परिणाम विशुद्ध होंय, तिनकरि ज्ञानावरणादिका नाश होंय, तब केवलज्ञान प्रगट होय । तहां पीछे विना उपाय अघातिया कर्मका नाराकरि शुद्ध सिद्धपदकों पावै । ऐसें उपदेशका तौ निमित्त बने, र अपन पुरुषार्थ करै, तौ कर्मका नारा होय । बहुरि जब कर्मका उदय तीव्र होय, तब पुरुषार्थ न होय सके है । ऊपरले गुणस्थाननितें भी गिर जाय है । तहां तौ जैसा होनहार तैसा ही होय । परंतु जहां मंद उदय होय, अर पुरुषार्थ होय, सकै, तहां तौ प्रमादी न होना- सावधान होय अपना कार्य करना । जैसैं कोऊ पुरुष नदीका प्रवाहविषै पड़ा है है। तहां पानीका जोर होय, तब तौ कका पुरुषार्थ किछू नाहीं । उपदेश भी कार्यकारी नाहीं । और पानीका जोर थोरा होय, तब तो पुरुषार्थकरि निकसना चाहै, तौ निकसि वै । तिसहीकों निक सनेको शिक्षा दीजिए है। और न निकसै तौ होलै २ बहै, पीछे पानीका जोर भएं ह्याचल्या जाय । तैसें ही यह जीरसंसारविषै भ्रमै है । तहां कर्मनिका तीव्र उदय होय, तत्र तो याका पुरुशार्थ किछू नाहीं । ताक उपदेश भी कुछ कार्यकारी नाहीं । र कर्मका मंद उदय होय, तत्र पुरुषार्थकरि मोक्षमार्गविधै प्रवत्तै तौ मोक्ष पावे । तिसहीकों मोक्षमार्गका ४८०
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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