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________________ मो मा. এজাহ पुरुषार्थ करे, सो पापहीको करे, धर्म कार्यका पुरुषार्थ होय सके नाहीं । तातै विचारशक्ति| सहित होय, अर जिसकै रागादिक मंद होंय, सो जीव पुरुषार्थकरि उपदेशादिकके निमित्ततें। तत्त्वनिर्णयादिविषै उपयोग लगावे, तो याका उपयोग तहां लागै, तब याका भला होय । जो इस अवसरविणे भी तत्त्वनिर्णय करनेका पुरापार्थ न करे, प्रमादत काल गमावै । के तौ। मंदरागादि लिएं विषयकषायनिके कार्यानिहीविष प्रवत्ते, के व्यवहार धर्मकार्यनिविषे प्रवत्र्ते, तब अवसर तो जाता रहै, संसारविष ही भ्रमण होय । बहुरि इस अवसरविषे जे जीव पुरुषार्थकरि तत्त्वनिर्णयकरनेविष उपयोग लगावनेका अभ्यास राखें, तिनिकै विशुद्धता बधै, ताकरि कर्मनकी शक्ति हीन होय । कितेक कालविणे आपोआप दर्शनमोहका उपशम होय, | तब या तत्वनिविणे यथावत् प्रतीति आवै । सो याका तो कर्तव्य तत्त्वनिर्णयका अभ्यास ही है। इसहीते दर्शनमोहका उपशम तो स्वयमेव ही होय । याम जीवका कर्तव्य किछ नाहीं । बहुरि ताकों होते जीवकै स्वयमेव सम्यग्दर्शन होय । बहुरि सम्यग्दर्शन होते श्रद्धान तो यह भया-में आत्मा हों, मुझको रागादिक न करने । परन्तु चारित्रमोहके उदयते रागादिक हो हैं । तहां तीत्र उदय होय, तब तो विषयादिविषै प्रवर्ते है, अर मंद उदय होय, तब अपने पुरुषार्थते धर्मकार्यनिविर्षे वा वैराग्यादिभावनाविषै उपयोगकर्को लगावै है । ताके निमित्ततें चारित्रमोह मंद होता जाय । ऐसें होते देशचारित्र वा सकलचारित्र FoorakOloH08001033000000000000000000000gooladooparoo9000000000000000000000000000004 ४७
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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