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मो.मा. निके निमित्तते पूर्व बंधे कर्मका भी उत्कर्षण अकर्षण संक्रमणादि होते तिनकी शक्ति हीन সক্ষাঙ্ক
अधिक हो है । कर्मउदयके निमित्तकरि तिनका उदय भी तीन मंद हो है । तिनके निमित्तते नवीन बंध भी तीन मंद हो है । तातें संसारी जीवनिकै कबहू ज्ञानादिक घने प्रगट हो || है, कबहू थोरे प्रगट हो हैं। कबहू रागादि मंद हो है, कबहू तीव्र हो है । ऐसे ही पलटनि । हूवा करे है । तहां कदाचित् संज्ञी पंचेंद्रिय पर्याप्त पर्याय पाया, तब मनकरि विचार करनेकी । शक्ति भई । बहुरि याकै कबहू तीन रागादिक होय, कबहू मंद होय । तहां रागादिकका | तीव्र उदय होते तो विषयकषायदिकके कार्यानिविणे ही प्रवृति होय । बहुरि रागादिकका | मंद उदय होते बाह्य उपदेशादिकका निमित्त बने अर आप पुरुषार्थकरि तिन उपदेशादि-11 कविणे उपयोगकौं लगावै, तो धर्मकार्यविषे प्रवृत्ति होय । अर निमित्त बने, वा आप पुरुषार्थ । न करे, कोई अन्य कार्यनिविषे प्रवत्ते, परंतु मंदरागादि लिएं प्रवचें, ऐसे अवसरविणे उपदेश | कार्यकारी है । विचारशक्तिरहित एकेद्रियादिक हैं, तिनिकै तौ उपदेश समझनेका ज्ञान ही। नाही। अर तीव्ररागादिसहित नीवनका उपदेशविर्षे उपयोग लागै नाहीं। ताते जो जीव । विचारशक्तिसहित होंय, अर जिनके रागादि मंद होय, तिनकों उपदेशका निमित्तते धर्मकी प्राप्ति होय जाय, तो ताका भला होय । बहुरि इस ही अवसरविर्षे पुरुषार्थ कार्यकारी है। एकेद्रियादिक तो धर्मकार्य करनेकों समर्थ ही नाही, केसे पुरुषार्थ करें । अर तीनकषायी ७८