SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 939
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मो.मा. प्रकाश అంత ఉంచి న 200 సం తన అందం న 20 -1000000 అందం తనింకు లంక तत्त्वनिर्णयविषे उपयोग लगावै, तब स्वयमेव ही मोहका अभाव भएं सम्यक्त्वादिरूप मोक्षके उपायका पुरुषार्थ बने है। सो मुख्यपनै तौ तत्वनिर्णयविष उपयोग लगावनेका पुरुषार्थ | करना । बहुरि उपदेश भी दीजिए है, सो इस ही पुरुषार्थ कराबनेके अर्थि दीजिए है। बहुरि इस पुरुषार्थते मोक्षके उपायका पुरषार्थ आपहीते सिद्ध होयगा । अर तत्वनिर्णय करनेविषे कोई कर्मका दोष है नाहीं । अर तू आप तो महंत रह्या चाहै, पर अपना दोष कर्मादिककै लगावे, सौ जिनआज्ञा मानें तो ऐसी अनीति संभवे नाहीं । तोको विषय कषा-1 । यरूप ही रहना है, ताते झूठ बोल है। मोक्षकी सांची अभिलाषा होय, तो ऐसी युक्ति काहेकों बनाये । संसारके कार्यनिविष अपना पुरुषार्थते सिद्ध न होती जाने, तो भी पुरुषा-1 र्थकरि उद्यम किया करे, यहां पुरुषार्थ खोइ बैठे । सो जानिए है, मोक्षकों देखादेखी उत्कृष्ट कहै है । याका खरूप पहचानि ताको हितरूप न जाने है। हित जानि जाका उद्यम बने, सो न करे, यह असंभव है । इहां प्रश्न-जो तुम कहा सो सत्य, परन्तु द्रव्य-॥ । कर्मके उदयते भावकर्म होय, भावकर्म द्रव्यकर्मका बंध होय, बहुरि ताके उदयते। भावकर्म होय, ऐसे ही अनादित परंपराय है, तब मोच का उपाय कैसे हो सके। साका समाधान,-- कर्मका बंध वा उदय सदाकाल समान ही हुवा करे, तो ऐसा ही है । परंतु परिणाम నుంచి నింపునిస్తుందని పంచి పంది :
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy