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मो.मा. प्रकाश
अनुरागी होय प्रवर्त्ते, ताका फल शास्त्रविषै तौ शुभबंध कया है, अर यह तिसतें मोक्ष चाह है, तो कैसें सिद्धि होय । यह तौ भ्रम है । बहुरि प्रश्न- जो भ्रमका भी तौ कारण कर्म ही है, पुरुषार्थ कहा करें। ताका उत्तर
सांचा उपदेशतै' निर्णय किएं भ्रम दूरि हो है । सो ऐसा पुरुषार्थ न करें है, तिसहीतें भ्रम रहे हैं । निर्णय करनेका पुरुषार्थ करे, तौ भ्रमका कारण मोहकर्म ताकों भी उपशमादि होय, तब भ्रम दूर हो जाय । जातै निर्णय करतां परिणामनिकी विशुद्धता हीय, तिसत मोहका स्थिति अनुभाग घटे हैं । बहुरि प्रश्न - जो निर्णय करनेविषै उपयोग म लगाव है, ताका भी तौ कारण कर्म हैं। तांका समाधान,
एकेंद्रियादिककै विचार करनेकी शक्ति नाहीं, तिनकै तो कर्महीका कारण है । या तो ज्ञानावरणादिकका क्षयोपशमतें निर्णय करनेकी शक्ति प्रगट भई है। जहां उपयोग लगावे, तिसहीका निर्णय होय सकै है । परंतु यह अन्य निर्णय करनेविषै उपयोग लगावै, यहां उपयोग न लगावे । सो यह तौ याहीका दोष है, कर्मका तौ किछू प्रयोजन नाहीं । बहुरि प्रश्न – जो सम्यक्त्वचारित्रका तौ घातक मोह है । ताका अभाव भए विना मोक्षका उपाय कैसे बने । ताका समाधान --
तत्वनिर्णय करनेविषै उपयोग न लागावै, सो तो याहीका दोष हैं । बहुरि पुरुषार्थकरि
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