________________
।
मो.मा. प्रकाश
न मिले तो सिद्धि न होय । सो जिनमतविषै जो मोक्षका. उपाय कह्या है, सो इसते मोक्ष होय हो होय । तातें जो जीव पुरुषार्थकरि जिनेश्वरका उपदेश अनुसार मोनका उपाय करें। है, ताके काललब्धि वा होनहार भी भया । अर कर्मका उपशमादि भया है, तो यह ऐसा ।। | उपाय करै है । तातै जो पुरुषार्थकरि मोक्षका उपाय करै है, ताकै सर्व कारण मिले हैं, ऐसा निश्चय करना । अर वाकै अवश्य मोक्षकी प्राप्ति हो है । बहुरि जो जीव पुरुषार्थकरि मोक्षका
उपाय न करे, ताकै काललब्धि होनहार भी नाहीं । अर कर्मका उपशमादि न भया है, तो भी यह उपाय न करे है । तातै जो पुरुषार्थकरि मोक्षका उपाय न करें है, ताके कोई कारण मिले नाह', ऐसा निश्चय करना । अर वाकै मोक्ष की प्राप्ति न हो है । बहुरि तू कहै हैउपदेश तो सर्व सुने हैं, कोई मोक्षका उपाय कर सकै, कोई न करि सके सो कारण कहा । | सो कारण यह है कि जो उपदेश सुनिकरि पुरुषार्थ करै है, सो वो मोक्षका उपाय करि सके है अर पुरुषार्थ न करै, सो मोक्षका उपाय न कर सके है। उपदेश तो शिक्षामात्र है, फल जैसा पुरुषार्थ करै तैसा लागे । बहुरि प्रश्न-जो द्रव्यलिंगी मुनि मोक्षके अर्थि गृहस्थपनौ छोड़ि तपश्चरणादि करै हैं, तहां पुरुषार्थ तो किया कार्य सिद्ध न भया, ताते पुरुषार्थ । किएं तो किछू सिद्धि नाहीं । ताका समाधान,-.
अन्यथा पुरुषार्थकरि फल चाहै, तो कैसें सिद्धि होय । तपश्चरणादि ब्यवहार साधनविष ४७५