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________________ .मा. काश goo-8000000000000Gloodachootd:00:00pgooo000000000000000000000000000000 सहकारी कारण है । मोहके उदयका नाश भएं इनिका बल नाहीं । अंतर्मुहूर्त्तकरि भापो | आप नाशकौं प्राप्ति होंय । परंतु सहकारी कारण भी दूरि होइ जाय, तव प्रगटरूप निराकुल । दशा भासे । तहां केवलज्ञानी भगवान् अनंतसुखरूप दशाकों आम कहिए । बहुरि अघाति कर्मनिका उदयके निमित्त शरीरादिकका संयोग हो है, सो मोहकर्मका उदय होते। शरीरादिकका संयोग आकुलताकौं बाह्य सहकारी कारण है । अंतरंग मोहका उदयते रागा-| दिक होय भर बाह्य अघाति कर्मनिके उदयते रागादिककौं कारण शरीरादिकका संयोय होय, तब आकुलता उपजै है । बहुरि मोहका उदय नाश भए भी अघातिकर्मका उदय रहै है, सो किछू भी आकुलता उपजाय सकै नाहीं । परंतु पूर्व आकुलताका सहकारि कारण | था, तातै अघाति कर्मनिका भी नाश आत्माकों इष्ट ही है । सो केवलीकै इनिके होते किछ दुख नाहीं । तातै इनका नाशका उद्यम भी नाही परंतु मोहका नाश भए ए कर्म आ | आप थोरे ही कालमें सर्व नाशकों प्राप्त होय जाप हैं । ऐसें सर्व कर्मका नाश होना | आत्माका हित है । बहुरि सर्व कर्मका नाशहीका नाम मोक्ष है । तातें आत्माका हित एक मोक्ष ही है-और किछु नाहीं, ऐसा निश्चय करना । इहां कोऊ कहै-संसार दशाविषै पुण्यकर्मका उदय होते भी जीव सुखी हो है, तातें केवल मोक्ष ही हित है, ऐसा काहेको कहिए । ताका समाधान-. 10 &0000000ROMGAOKIGroopooookGOOsciorpoeorg/O900AMOckoop Tools00000000000000 - -
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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