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________________ मो.मा. . अथ मोक्षमार्गका स्वरूप कहिए हैप्रकाश दोहा। शिवउपाय करतें प्रथम, कारन मंगलरूप । विघनविनाशक सुखकरन, नौं शुद्ध शिबभूप ॥ १ ॥ पहिले मोचमार्गके प्रतिपक्षी मिथ्यादर्शनादिक तिनिका खरूप दिखाया । तिनिकों ।। तो दुःखरूप दुःखका कारन जानि हेय मानि तिनिका त्याग करना । बहुरि बीचमें उपदेशका स्वरूप दिखाया । ताको जानि उपदेशको यथार्थ समझना । अब मोक्षके मारग सम्यग्दर्शनादिक तिनिका स्वरूप दिखाइए है । इनिकों सुखरूप सुखका कारण जानि उपादेय मानि | अंगीकार करना । जाते आत्माका हित मोक्ष ही है । तिसहीका उपाय आत्माकों कर्तव्य | है। तातें इसहीका उपदेश इहां दीजिए है । तहां आत्माका हित मोक्ष ही है और नाहीं । ऐसा निश्चय कैसे होय, सो कहिए है-- ___आत्माके नाना प्रकार गुणपर्यायरूप अवस्था पाइए है । तिनविषै और तो कोई अव स्था होहू, किछू आत्माका विगाड़ सुधार नाहीं। एक दुखसुखअवस्थातें बिगाड़ सुधार है। । सो इहां किछू हेतु दृष्टांत चाहिए नाहीं । प्रत्यक्ष ऐसे ही प्रतिभास है । लोकविर्षे जेते | आत्मा हैं, तिनिकै एक उपाय यह पाइए है-दुख न होय सुख ही होय । बहुरि अन्य उपाय ||१६७
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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