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________________ मो.मा. प्रकाश -1000000000000fpoorngojpootoojpor-googcooteorolevogetsofinsfook CardGiroutela.0000 काहकै होना दीसे नाहीं । अनुमानतें मिले नाहीं । सो ऐसे भी कथन बहुत पाइए है। यहां सर्वज्ञादिककी भूलि मानिए, सो तो कैसे भूलै । अर विरुद्ध कथन मानने में आवै नाहीं। तातै तिनिके मतविषै दोष ठहराइए है । ऐसा जानि एक जिनमतका ही उपदेश ग्रहण करने योग्य है। तहां प्रथमानयोगादिकका अभ्यास करना। तहां पहिले याका अभ्यास करना, पीछे याका करना, ऐसा नियम नाहीं। अपने परिणामनिकी अवस्था देखि जिसके अभ्यासतें अपने धर्मविषै प्रवृत्ति होय, तिसहीका अभ्यास करना । अथवा कदाचित् किसी शास्त्रका अभ्यास करे, कदाचित् किसी शास्त्रका अभ्यास करै । बहुरि जैसे रोजनामाविषै तौ | अनेक रकम जहां तहां लिखी है, तिनकों खातेमें ठीक खतावै, तो लैना दैनाका निश्चय होय । तैसे शास्त्रनिविषै तौ अनेक प्रकारका उपदेश जहां तहां दिया है, ताकौं सम्यग्ज्ञानविषै यथार्थ प्रयोजन लिएं पहिचान, तौ हित अहितका निश्चय होय । तातै स्यात्पदकी सापेक्ष लिएं सम्यग्ज्ञानकरि जे जीव जिनवचनविषै रमै हैं, ते जीव शीघ्र ही शुद्ध आत्मस्वरूपों प्राप्त हो हैं । मोक्षमार्गविर्ष पहिला उपाय आगमज्ञान कह्या है। आगमज्ञान बिना और धर्मका साधन होय सकै नाहीं । तातें तुमकौं भी यथार्थबुद्धिकरि आगम अभ्यास करना । तुम्हारा कल्याण होगा। इति श्रीमोक्षमार्गप्रकाशक नाम शास्त्रमध्ये उपदेशखरूप प्रतिपादक नामा आठवां अधिकार पूरण भया ।
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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