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मो.मा.
प्रकाश
अम्मत का कथन सदोष है । लोकविषै भी एक प्रयोजनको पोपते नाना वचन कहै, ताक प्रमाणीक कहिए है। अर प्रयोजन और और पोपती बात करें, ताक बाघला कहिए है । बहुरि जिनमतविषै नाना प्रकार कथन हैं, सो जुदी जुदी अपेक्षा लिए है, तहां दोष नाहीं । अन्यमतविषे एक ही अपेक्षा लिए अन्य कथन करें, तहां दोष है । जैसें जिनदेवके वीतरागभाव हैं, अर समवसरणादि विभूति पाइए है, तहां विरोध नाहीं । समवसरणादि विभूतिकी रचना इंद्रादिक करे हैं, इनके तिसविषै रागादिक नाहीं, तातै दोऊ बातें संभव हैं । अर अन्यमतिविषै ईश्वरकों साक्षीभूत वीतराग भी कहैं, अर तिसहीकर किए काम क्रोधादि भाव निरूपण करें, सो एक ही आत्मा के वीतरागपनौ अर काम क्रोधादि भाव कैसें संभवें । ऐसें ही अन्य जानना । बहुरि कालदोषतैं जिनमतविषै एक ही प्रकारकरि कोई कथन विरुद्ध लिख्या है, सो यह तुच्छ बुद्धीनिकी भूलि है, किछू मतविषै दोष नाहीं । सो भी जिनमतका अतिशय इतना है कि, प्रमाणविरुद्ध कोई कथन कर सकै नाहीं । कहीं सौरीपुरविषै कहीं द्वारावतीविषै नेमिनाथ स्वामीका जनम लिख्या है, सो कोठे ही होहु, परंतु नगरविषै जनम होना प्रमाणविरुद्ध नाहीं । अब भी होता दीसैं है ।
" बहुरि अन्यमतविषै सर्वज्ञादि यथार्थ ज्ञानीके किए ग्रंथ बतावें, बहुरि तिनिविषै परस्पर बिरुद्ध भासे । कहीं तौ बालब्रह्मचारीकी प्रशंसा करें, कहीं कहें " पुत्रविना गति ही होय नाहीं" सो दोऊ सांचा कैसे होय । सो ऐसे कथन तहां बहुत पाइए हैं । बहुरि प्रमाणविरुद्ध कथन तिनविषै पाइए है। जैसे वीर्य मुखविषै पड़नेते मछलीकै पुत्र हूवो, सो ऐसें अवार
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