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प्रकारा
, तेलें प्रमाण है, ऐसे मान लेना । जाते देवादिकका वा तत्वनिका निर्धार भए विना तो मोबमार्ग होय न हो । तिनिका तो निर्धार भी होय सकै है, सो कोई इनिका स्वरूप विरुद्ध कहै, तो आपहीकों भासि जाय । बहुरि अन्य कथनका निर्धार न होय, वा संशयादि रहै, वा अन्यथा जानपना होय जाय, अर केवल का कह्या प्रमाण है, ऐसा श्रद्धान रहै, तो | मोबनार्ग वेषै विन नाही, ऐता जानना । इहां कोई तर्क करे-जैसैं नाना प्रकार कथन जिनमतविषे कया, तैसें अन्यमन वे भी कथन पाईए है, सो तुम्हारे मतके कथनका तो तुमे तिस जिस प्रकार स्थापन किया, अन्यमतविष ऐसे कथनकों तुम दोष लगावो हो, सो यह तुम्हारै रागद्वेष है । ताका समाधान
कथन तो नाना प्रकार होय और प्रयोजन एकही हौं पोष, तो कोई दोष है नाहीं। |अर कहीं कोई प्रयोजन पोष, कहीं कोई प्रयोजन पोषे, तो दोष ही है । सो जिनमतविष | तो एक प्रयोजन रागादि मेटनेका है, सो कहीं बहुत रांगादि छुड़ाय थोरा रागादि कराबनेका प्रयोजन पोया है, कहों सर्व रागादि छावनेका प्रयोजन पोप्या है। परंतु रागादि | बधावनेका प्रयोजन कहीं भी नाहीं । तातै जिनमतका कथन सर्व निर्दोष है । अर अत्यमतविषे कहीं रागादि मिटावनेके प्रयोजन लिएं कथन करें, कहीं रागादि बधाधनेका प्रयोमन लिएं कथन करें । ऐसे ही और भी प्रयोजनकी विरुद्धता लिए कयन करें हैं । ताते
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