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मोमा.
प्रकाश
उपजे, पीछे देवांगना चयकरि बीचमें अन्य पर्याय धरै, तिनका प्रयोजन न जानि कथन किया। पीछे वह साथि मनुष्य पर्यायविष उपजे, ऐसे विधि मिलाएं विरोध दूरि हो है । ऐसें ही अन्यत्र विधि मिलाय लेनी । बहुरि प्रश्न--जो ऐसे कथननिविर्षे भा कोई प्रकार विधि निलै । परंतु कहीं नेनिनाथ खामीका सौरीपुरविषे कही द्वारावतीविषे जन्म कह्या, | रामचंद्रादिककी कथा अन्य अन्य प्रकार लिखी। एकेन्द्रियादिकों कहीं सासादन गुणस्थान लिख्या, कहीं न लिख्या, इत्यादि इन कथननिकी विधि कैसे मिले । ताका उत्तर
ऐसे विरोध लिएं कथन कालदोषते भए हैं। इस कालविणे प्रत्यक्ष ज्ञानी वा बहुश्रुत|निका तो अभाव भया, अर स्तोकबुद्धि ग्रंथ करनेके अधिकारी भए। तिनके भ्रमतें कोई अर्थ अन्यथा भासे, ताकौं तैसें लिखें, अथवा इस कालविर्षे कई जैनमतविष भी कषायी भए हैं, सो तिनने कोई कारण पाय अन्यथा कथन लिख्या है । ऐसें अन्यथा कथन भया, ताते जैन शास्त्रनिविणे विरोध भासने लागा। सो जहां विरोध भासे, तहां इतना करना कि, इस कथन करनेवाले बहुत प्रमाणीक हैं कि, इस कथन करनेवाले बहुत प्रमाणीक हैं । ऐसा विचारकरि बड़े आचार्यादिकनिका कह्या कथन प्रमाण करना । बहुरि जिनमतके | बहुत शास्त्र हैं, तिनहीकी आम्नाय मिलावनी । जो परंपराआम्नायतें मिले, सो कथन प्रमाण करना । ऐसें विचार किएं भी सत्य असत्यका निर्णय न होय स+, तो जैसें केवलीकों भास्या