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मा.मा. योग्य नाहीं । या प्रकार स्याद्वाददृष्टि लिएं जैमशास्त्रनिका अभ्यास किएँ अपना कल्याप्रकाश हो
- यहां कोई प्रश्न करे-जहां अन्य अन्य प्रकार न संभवे, तहां तो स्याद्वाद संभवे । बहुरि एक ही प्रकारकरि शास्त्रनिविणे विरुद्ध भास, तहां कहा करिए । जैसें प्रथमानुयोग
विर्षे एक तीर्थकरकी साथि हजारों मुक्ति गए बताए, करणानुयोगविर्षे छह महीना आठस: मयविषै छसै पाठ जीव मुक्ति जाय, ऐसा नियम किया । प्रथमानुयोगविर्षे ऐसा कथन
किया-देव देवांगना उपजि पीछे मरि साथि ही मनुष्यादि पर्यायविषे उपजे । करणा
नुयोगविष देवका सागरों प्रमाण देवांगनाका पल्यों प्रमाण आयु कह्या । इत्यादि विधि । कैसे मिले। ताका उत्तर
करणानुयोगविणे कथन है, सो तो तारतम्य लिएं है । अन्य अनुयोगनिविणे कथन | प्रयोजन अनुसारि है । तातें करणानुयोगका कथन तो जैसे किया है, तैसें ही है । औरनिका कथनकी जैसे विधि मिले, तैसें मिलाय लेनी । हजारों मुनि तीर्थंकरकी साथि मुक्ति। गए बताए, तहां यह जानना-एक ही काल इतने मुक्ति गए नाहीं ! जहां तीर्थकर गमनादि क्रिया मेटि स्थिर भए, तहां तिनकी साथ इतने मुनि तिष्ठे, बहुरि मुक्ति आगे पीछे गए । ऐसें प्रथमानुयोम करणानुयोगका विरोध दूरि हो है । बहुरि देव देवांगना साथि