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मो.मा. रण-जैसे पाप मेटनेक अर्थ प्रतिक्रमणादि धर्मकार्य कहे, बहुरि आत्मानुभव होते प्रतिक्रमप्रकाश
णादिकका विकल्प करै, तो उलटा विकार बधै, याहीते समयसारविषै प्रतिक्रमणादिकौं विष किया है । यहुरि जैसे अवतीके करने योग्य प्रभावनादि धर्मकार्य कहे, तिनकों प्रती होयकरि 12 करे, तो पाप ही बांधे । व्यापारादि आरंभ छोड़ि चैत्यालयादि कार्यनिका अधिकारी होय, सो 1 कैसे बने । ऐसे ही अन्यत्र जानना। बहुरि जैसे पाकादिक औषधि पुष्टकारी हैं, परन्तु | ६. ज्वरवान् ग्रहण करें, तो महादोष उपजे । तैसें ऊंचा धर्म बहुत भला है, परंतु अपने विकार-18
भाव दूरि न होय,अर ऊंचा धर्म ग्रहै, तौ महादोष उपजै । यहां उदाहरण-जै अपना अशुभविकार न छट्या, अर निर्विकल्पं देश की अंगीकार करें, तो उलटा विकार वधै । जैसें ध्यापारादि करनेका विकार तो न छुट्या अर त्यागकाभेषरूप धर्म अंगीकार करें, तो महादोष उपजे। बहुरि जैसे भोजनादि विषयनिविषै आसक्त होय अर आरंभत्यागादि धर्मकों अंगीकार करे, तो घुराई ही होय । ऐसे ही अन्यत्र जानना । याही प्रकार और भी सांचा विचारते उपदेशकों यथार्थ जानि अंगीकार करना । बहुरि विस्तार कहांताई करिए । अपनैं सम्पज्ञान भए श्रापहीकों यथार्थ भासै । उपदेश तो वचनात्मक है । बहुरे वचनकरि अनेक अर्थ युगपत् कहे जाते हैं नाहीं । ताते उपदेश तो एक ही अर्भकी मुख्यता लिएं हो है । बहुरि जिस अर्थका जहां वर्णन है, तहां तिसह की मुख्यता है । दूसरे अर्थकी तहां ही मुख्यता करें, तो दोऊ उपदेश दृढ़ न
- rssaram