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________________ ॥ ४ ॥ न मोक्षकी चाह रखकर आकुल होते हैं-परम निस्पृह हैं। भास्मानुभवले आनंदके लिये ही ध्यान ४ करते हैं। किसी तरहका प्रशस्त या अप्रशस्त निदान नहीं करते हैं कि हमारे साधनका यह फल होना ही चाहिये। तत्वार्थसूत्र में श्री उमास्वामी महाराजाने कहा है-"निशल्यो ब्रती-१८-७ ब्रती तीन शल्यसे रहित होता है। शल्य कांटेके समान चुभती है। निर्मल व्रतको नहीं पालने देती र है। जो शल्य रहित व्यवहार व निश्चय रत्नत्रयके पालक हैं वे ही सच्चे सद्गुरु हैं, उनके चरणोंको वार चार नमस्कार हो। श्लोक-कुगुरुं अगुरुं प्रोक्तं, मिथ्यारागादिसंयुतं । कुज्ञानं प्रोक्तं लोके, कुलिंगी अशुभभावना ॥७५॥ अन्वयार्थ-(मिथ्यारागादिसंयुतं) मिथ्यात्व तथा राग बेषादि भावोंको धरने वाले (कुगुरुं) कुगुरुको (गुरु) यथार्थ गुरू नहीं ऐसा (प्रोक्तं) कहा गया है। उनके भीतर (लोके) लोकके सम्बन्धमें (कुज्ञानं ) मिथ्याज्ञान है ऐसा (प्रोक्तं ) कहा गया है। वे (कुलिंगी) जिन मुनिके यथार्थ भेषको छोड़कर अनेक अयोग्य भेषों को रखनेवाले हैं। (अशुभ भावना) उनकी भावना अशुभ रहती है। विशेषार्थ-अब यहां कुगुरु या अगुरुका स्वरूप कहना प्रारंभ किया है। जो लक्षण सुगुरुके पहले बता चुके हैं वे लक्षण जिनमें न हों वेही कुगुरु हैं तथा वेही अगुरु हैं, वे गुरु मानने योग्य नहीं हैं। क्योंकि उनके भीतर व्यवहार व निश्चय दोनों ही प्रकारके सम्यग्दर्शन नहीं है। वे अनादिॐ कालीन अगृहीत मिथ्यात्व व गृहीत मिथ्यात्वसे ग्रसित हैं। जो भक्ति व पूजा करे उस पर राग करनेवाले जो भक्ति व पूजा न करे उसपर देष करनेवाले हैं। तीन लोक जीवादि छः द्रव्योंका ४ समुदाय है। इस सम्पन्धमें उनका ज्ञान ठीक नहीं है तथा वे मंमारको त्यागने योग्य-दुःखरूप नहीं समझते हैं, वे मोक्षको उपादेय तथा सुखरूप नहीं जानते हैं। अपनी वड़ाई, महिमा, मिष्ट खानपान * आदि भावोंमें तल्लीन हैं। शुद्ध आत्मीक आनन्दका स्वाद नहीं पारहे हैं। उनके भावना शुद्ध स्वरूपकी नहीं है और न शुभोपयोग ही है। क्योंकि जो शुभ भाव शुद्धोपयोगकी श्रद्धा रहित है वह शुभोपयोग वास्तवमें नहीं है, सम्यग्दृष्टीके ही असली शुभोपयोग होता है। मिथ्यादृष्टीका ॥ ॥
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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