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प्रकाश
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समय है, मतका नाम समय है। ऐसे अनेक अर्थनिविषे जैसा जहां संभवे, तैसा तहां अर्थ || जान लेना । बहुरि कहीं तो अर्थ अपेक्षा नामादिक कहिए है, कहीं रुदिनपेक्षा नामादिक कहिए। है। जहां रूढ़िअपेक्षा नाम लिख्या होय, तहां वाका शब्दार्थ न ग्रहण करना । वाका रूदिरूप । अर्थ होय, सो ही ग्रहण करना । जैसे सम्यक्तादिककौं धर्म कह्या। तहां तो यह जीवकों उत्तम-1 स्थानविष धार है, ताते याका नाम सार्थक है । बहुरि धर्मद्रव्यका नाम धर्म कह्या, तहां। रूढ़ि नाम है । याका अक्षरार्थ न ग्रहणा । इस नाम धारक एक वस्तु है, ऐसा अर्थ ग्रहण करना । ऐसें ही अन्यत्र जानना । बहुरि कहीं जो शब्दका अर्थ होता हो, सो तौ न ग्रहण | करना अर जहाँ जो प्रयोजगभूत अर्थ होय, सो ग्रहण करना । जैसे कही किसीका || अभाव कह्या होय, अर तहां किंचित् सद्भाव पाईए, तौ तहां सर्वथा अभाव न ग्रहण करना । किंचित् सद्भावकों न गिणि प्रभाव कहा है, ऐसा अर्थ जानना । सम्यग्दृष्टीकै रागा-| दिकका अभाव कह्या, तहां एसैं अर्थ जानना । बहुरि नोकषायका अर्थ तो यह,-'कषायका । विषेध' सो तो अर्थ न ग्रहण करना, पर यहां क्रोधादि सारिखे ए कषाय नाही, किंचित् कषाय हैं, तातै नोकषाय हैं। ऐसा अर्थ ग्रहण करना । ऐसें ही अन्यत्र जानना । बहुरि जैसे कहीं। कोई युक्तिकरि कथन किया होय, तहां प्रयोजन ग्रहण करना । समयसारका कलशाविषे यह कह्या-“धोबीका दृष्टान्तवत् परभावका त्यागकी दृष्टि यावत् प्रवृत्तिको न प्राप्त भई, तावत् यह।। ४५५