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________________ मो.मा. प्रकाश अजवि तिरयणसुद्धा अप्पाज्झाऊण जंति सुरलोये। लोयंते देवत्तं तच्छ चुया णिब्बुदिं जंति ॥ ७७॥ याका अर्थ-अबहू त्रिकरणकरि शुद्ध जीव आत्माकों ध्यायकरि स्वर्गलोकवि प्राप्त हो हैं, वा लोकांतिकविषै देवपणो पावै हैं । तहांते च्युत होय मोक्ष जाय हैं । तातें इस | कालविषे भी द्रव्यानुयोगका उपदेश मुख्य चाहिए । बहुरि काई कहै है-द्रव्यानुयोगविषै। | अध्यात्मशास्त्र हैं, तहां खपरभेद विज्ञानादिकका उपदेश दिया, सो तो कार्यकारी भी। घना और समझिमें भी शीघ्र आवै । परंतु द्रव्यगुणपर्यायादिकका वा अन्यमतके कहे तत्त्वादिकका निराकरणकरि कथन किया, सो तिनका अभ्यासते विकल्प विशेष होय । बहुत प्रयास किए जाननेमें आवै । तातें इनका अभ्यास न करना । तिनकौं कहिए। Octoo-0000000200090foo%20fooECHROTEClockoo360HSMOOHS600186100660626002coortooretoot सम्म सामान्य जाननेते विशेष जानना बलवान् है । ज्यों ज्यौं विशेष जाने त्यों त्यों वस्तुखभाव निर्मल भासे, श्रद्धान दृढ़ होय, रागादि घटे, तातै तिस अभ्या-1 सविर्षे प्रवर्त्तना योग्य है । ऐसें च्यास्यों अनुयोगनिविर्षे दोषकल्पनाकरि अभ्यासते पराङ्-1। मुख होना योग्य नाहीं। बहुरि ब्याकरण न्यायादिक शास्त्र हैं, तिनका भी थोरा बहुत अभ्यास करना । जात ४४६
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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