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________________ मो.मा. प्रकाश fonMAGAROOMorronser/mangrera-BHOOADxoodoopcreoserongero+Ho+tBROOKaskoolatakarana सम्यक्त होय पीछे व्रत होय । सो सम्यक्त स्वपरका श्रद्धान भए होय, अर सो श्रद्धान द्रव्यानुयोगका अभ्यास किए होय । तातें पहले द्रव्यानुयोगकै अनुसार श्रद्धानकरि सम्यदृष्टी होय, पीछे चरणानुयोगकै अनुसार व्रतादिक धारि व्रती होय । ऐसें मुख्यपने तो नीचली दशाविषे ही द्रव्यानुयोग कार्यकारी है, गौणपनै जाकों मोक्षमार्गकी प्राप्ति होती || न जानिए, ताकों पहले कोई व्रतादिकका उपदेश दीजिए है । जाते ऊंची दयावालोंकों अध्यात्म उपदेश अभ्यास योग्य है, ऐसा जानि नीचलीदशावालोंकों तहांते। पराङ्मुख होना योग्य नाहीं । बहुरि जो कहोगे, ऊंचा उपदेशका स्वरूप नीचली दशावालोंकौं भासै नाहीं। ताका उत्तर-- और तो अनेक प्रकार चतुराई जा. अर यहां मुर्खपना प्रगट कीजिए, सो युक्त नाहीं । अभ्यास किएं स्वरूप नीके' भास है । अपनी बुद्धि अनुसार थोरा बहुत भासे, परंतु सर्वथा निरुद्यमी होनेकों पोषिए, सो तौ जिनमार्गका द्वेषी होना है। बहुरि जो कहोगे, अबार काम निकृष्ट है, तातें उत्कृष्ट अध्यात्मका उपदेशकी मुख्यता न करी । ताकौं कहिए । है, अबार काल साक्षात् मोक्ष होनेकी अपेक्षा निकृष्ट है, आत्मानुभवनादिककरि सम्यक्तादिकका होना अबार मनैं नाहीं । ताते' आरजानुभवनादिककै अर्थ द्रव्यानुयोगका अवश्य अभ्यास करना । सोई पाहुइविष ( मोक्षपाडुङमें ) कह्या है ४४८
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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