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________________ मो.मा. प्रकाश 000 000 लिए कथन कीजिए है । ऐसें इन च्यारि अनुयोगनिका निरूपण किया । बहुरि जनमतविषै घने शास्त्र तौ इन च्यारौ अनुयोगनिविषे गर्भित हैं । बहुरि व्याकरण न्याय छंद कोषादिक शास्त्र वा वैद्यक ज्योतिष वा मंत्रादि शास्त्र भी जिनमतविषै पाईए है । तिनका कहा प्रयोजन है, सो सुनहु - व्याकरण न्यायायादिकका अभ्यास भए अनुयोगरूप शास्त्रनिका अभ्यास होय सकै है । तातें व्याकरणादिक शास्त्र कहे हैं । कोऊ कहै, - भाषारूप सूधा निरूपण करते तौ व्याकरणादिकका कहा प्रयोजन था । ताका उत्तर भाषा तौ अपभ्रंशरूप अशुद्ध वाणी है। देश देशविषै और और है सो महंतपुरुष शास्त्रनिवि ऐसी रचना कैसे करें । बहुरि व्याकरण न्यायादिककरि जैसा यथार्थ सूक्ष्म अर्थ निरूपण हो है, तैसा सूधी भाषाविषै होय सकै नाहीं । तातैं व्याकरणादि आम्नायकरि वर्णन किया है । सो अपनी बुद्धिअनुसार थोरा बहुत इनका अभ्यासकरि अनुयोगरूप प्रयोजनभूत शास्त्रनिका अभ्यास करना । बहुरि वैद्यकादि चमत्कारतें जिनमतकी प्रभावना होय वा औषधादिकतें उपकार भी बने, अथवा जे जीव लौकिक कार्यचिषै अनुरक्त हैं, ते वैद्यकादिक चमत्कारतें जैनी होय पीछे सांचा धर्म पाय अपना कल्याण करें । इत्यादि प्रयोजन लिए वैद्यकादि शास्त्र कहे हैं। यहां इतना है—ए भी जिनशास्त्र है, ऐसा जानि इनका अभ्यास ४३६
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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