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________________ मो.मा. प्रकाश | अलंकारादि युक्तिसहित कथनते उपयोग लागै । बहुरि परोक्ष वातकों किछू अधिकताकरि निरूपण करिए, तो वाका स्वरूप नीकें भासै । बहुरि करणानुयोगविणे गणित आदि शास्त्र| निको पद्धति मुख्य है । जाते तहां द्रव्य क्षेत्र काल भावका प्रमाणादिक निरूपण कीजिए है । सो गणित ग्रंथनिकी आम्नयत ताका सुगम जानपना हो है । बहुरि चरणानुयोगविर्षे सुभाषित नीतिशास्त्रनिकी पद्धति मुख्य है । जाते यहां अचरण करावना है, सो लोकप्रवृत्तिके अनुसार नीतिमार्ग दिखाए वह आचरन करै । बहुरि द्रव्यानुयोगविर्षे न्यायशास्त्रनिकी | पद्धति सुख्य है । जाते यहां निर्णय करनका प्रयोजन है अर न्यायशास्त्रनिविषै निर्णय कर| नेका मार्ग दिखाया है। ऐसें इन अनुयोगनिविष पद्धति मुख्य है। और भी अनेक | | पद्धति लिए व्याख्यान इनविषै पाईए है । यहां कोऊ कहै-अलंकार गणित नीति न्यायका तो ज्ञान पंडिततनिके होय, तुच्छबुद्धि समझें नाहीं, ताते सूधा कथन क्यों न किया। | ताका उत्तर1. शास्त्र है सो मुख्यते पंडित अर चतुरनिके अभ्यास करने योग्य है । सो अलंकारादि | आम्नाय लिएं कथन होय, तो तिनका मन लागे । बहुरि जे तुच्छत्रुद्धि हैं, तिनकों पंडित | समझाय दें। अर जे न समझि सके, तौ तिनकों मुखतें सूधा ही कथन कहें । परंतु ग्रंथ|निमें सूधा कथन लिखें विशेषबुद्धि तिनका अभ्यासविषे न प्रवत्त । तातें अलंकारादि आम्नाय ||४३८
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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