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मो.मा.
प्रकाश
ఆనించి నందుని శని
निरूपण करणानुयोगवि पाईए है। ऐसे ही अन्यत्र जाननें । ताते द्रव्यानुयोगके कथनकी करणानुयोगते विधि मिलाया चाहिए, सो कहीं तो मिले कहीं न मिले । जैसे यथाख्यातचारित्र भए, तो दोऊ अपेक्षा शुद्धोपयोग है, बहुरि नीचली दशाविष द्रव्यानुयोग अपेक्षा तो कदाचित् शुद्धोपयोग होय अर करणानुयोग अपेक्षा सदा काल कषायअंशके सद्भावतें शुद्धोपयोग नाहीं । ऐसें ही अन्य कथन जानि लेना । बहुरि ,व्यानुयोगवि परमतविषे ।। कहे तत्त्वादिक तिनकों असत्य दिखावनेके अर्थ तिनका निषेध कीजिए है, तहां द्वेषबुद्धि न जाननी । तिनको असत्य दिखाय सत्य श्रद्धान करावनेका प्रयोजन जानना । ऐसे ही और ।। भी अनेक प्रकारकरि द्रव्यामुयोगविर्षे व्याख्यानका विधान किया है। या प्रकार च्यारों अनुयोगके व्याख्यानका विधान कह्या, सो कोई ग्रंथविषै एक अनुयोगकी, कोई विर्षे दोयकी कोई विषे तीनकी, कोई विषे च्यारोंकी प्रधानता लिए व्याख्यान हो है । सो जहां जैसा संभब, तहां तैसा समझ लेना।
अब इन अनुयोगनिविष कैसी पद्धतिकी मुख्यता पाईए है, सो कहिए
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प्रथमानुयोगविषै तो अलंकारशास्त्रनिकी वा काव्यादि शास्त्रनिकी पद्धति मुख्य है ।। जाते अलंकारादित मन रंजायमान होय । सूभी बात कहें ऐसा उपयोग लागे नाहीं, जैसा । ४३७