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________________ मो.मा. प्रकाश ockonkacootosrooprocer-Raceracookicsooksonaconcroporoscope इतना विशेष है, जो चरणानुयोगविर्षे तो बाधक्रियाको मुख्यताकरि वर्णन करिए है, अर द्रव्यानुयोगविषे आत्मपरिणामनिकी मुख्यताकरि निरूपण कीजिए है-करणानुयोगवत् सूक्ष्मवर्णन न कीजिए है । ताके उदाहरण कहिए है____उपयोगके शुभ अशुभ शुद्ध ऐसे तीन भेद कहे । तहां धर्मानुरागरूपं परिणाम सो |शुभोपयोग, पापानुगग वा द्वेषरूप परिणाम सो अशुभोपयोग, अर रागद्वेषरहित परिणाम सो शुद्धोपयोग, ऐसे कह्या । सो इस छद्मस्थके परिणामनिकी अपेक्षा यह कथन है । करणीनु| योगविषै कषायशक्ति गुणस्थानादिविषे संक्रश विशुद्ध परिणाम निरूपणं किया है, सो विवक्षा यहां नाहीं है । करणानुयोगविर्षे तो रागादिरहित शुद्धोपयोग, यथाख्यातचारित्र भए होय, सो मोहका नाश भए स्वयमेव होगा । नीचली अवस्थावाला शुद्धोपयोग साधन केसे करें । अर द्रव्यानुयोगविर्षे शुद्धोपयोग करनेहीका मुख्य उपदेश है, तातै यहां छनस्थ जिस कालविष बुद्धिगोचर भक्ति आदि वा हिंसा आदि कार्यरूप परिणामनिकों छुड़ाय आत्मानुभवनादि कार्यनिविषे प्रवत्ते, तिस काल ताको शुद्धोपयोगी कहिए । यद्यपि यहां केवलज्ञानगोचर सूक्ष्म | रागादिक हैं, तथापि ताकी विवक्षा यहां न कही, अपनी बुद्धिगोचर रागादिक छोड़ि तिस। अपेक्षा याकौं शुद्धोपयोगी कह्या है । ऐसे ही स्वपरश्रद्धानादिक भए सम्यक्तादिक कहे, सो| बुद्धिगोचर अपेक्षा निरूपण है। सूक्ष्म भावनिकी अपेक्षा गुणस्थानादिविष सम्यक्तादिकका BEGeopcloo080pcrookGOOJORMOOracto000000000000000000000000000000otapakti+0a8001nde RECOR
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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