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________________ सारणतरण ॥ ७६ ॥ नाशकर सीधा मोक्ष द्वीपको चला जावे। श्रीगुरुको यह दृढ़ श्रवान है कि मात्र निश्चय रत्नत्रयमई शुद्ध आत्मतत्वकी दृष्टि ही, व उसीका स्वसंवेदन ज्ञान व साक्षात्कार ही संसार-समुद्रसे तारने की शक्ति रखनेवाला एक अनुपम जहाज है, इसके सिवाय और कोई जहाज या उपाय हो नहीं सका है । वे श्रीगुरु इसी तत्वकी आराधनाका शिष्योंको उपदेश करते हैं, सचा मोक्षमार्ग बताते हैं, व आप भी इसीका अनुभव करते हुए वीतरागी होजाते हैं और यदि तद्भव मोक्ष होने की योग्यता हुई व द्रव्य, क्षेत्र, काल, भाव हुआ तो मुक्त हो परमात्मापदपर पहुंच जाते हैं। यहां यह दिखाय है कि ऐसे आत्मानुभवी महाव्रतोंके धारी, तपस्वी, संगमी गुरुको ही सच्चा गुरु मानो । इसी गुरुकी सेवा भक्ति करो तब हो सच्चा भात्मधर्म मिलेगा व मोक्षमार्गपर गमन होसकेगा । अन्य किसी संसारासक ख्याति लाभ पूजादिकी चाह धारी आत्मानुभव रहित साधुको कभी सुगुरु नहीं मानना चाहिये । श्लोक – यावत् शुद्ध गुरुं मान्यो, तावत् विगतविभ्रमः । शल्यं निकंदवं येन तस्मै श्री गुरुभ्यो नमः ॥ ७४ ॥ अन्वयार्थ - ( यावत् ) जबतक (शुद्धगुरुं ) शुशुद्ध आत्माके अनुभवी चारित्र से शुद्ध ऐसे गुरुकी ( मान्यः ) मान्यता रहेगी, भक्ति, पूजा व प्रतिष्ठा, संगति की जायगी ( तावत् ) तबतक ( गतविभ्रमः) कोई मिथ्याभाव नहीं रहेगा ( येन ) जिस गुरुने ( शस्य ) माया, मिथ्या निदान तीन शल्यों को (निकंदनं ) नष्ट कर दिया है । ( तस्मै ) उस (श्री गुरुभ्यो ) श्री गुरुको (नमः) नमस्कार हो । विशेषार्थ - जो कोई भव्यजीव चारित्रवान, व्रन, तप, संयमके धारी, शुद्ध आत्माके अनु मवी गुरुकी सेवा करेगा उनहीको सच्चा तरन तारन गुरु मानेगा, वह सदा संसार के मोह से दूर रहेगा । जबतक वह ऐसे सद्गुरुका भक्त होगा तबतक वह अवश्य मिध्यामार्ग से बचा रहेगा, उसको आत्मतत्वमें व मोक्षमार्ग में कोई भ्रम या शंका नहीं पैदा होगी। श्रीगुरुका उपदेश शंकाको निवा रनेवाला सदा मिलता रहेगा । जो कोई ऐसे सच्चे गुरुका शरण छोडेगा वह संसारमार्गी होकर भ्रम में पड़ जायगा, शंकाशील होजायगा, मोहमें फंस जायगा । यह सबै गुरु शल्य रहिन होते हैं। मायाचार करके कभी कोई मन, वचन, कायकी क्रिया नहीं करते हैं। जो साधुके अठाईस मूलगुण श्रावकाचार ॥७६॥
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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