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________________ भूमिका ॥५॥ १- श्रावकाचार — ठोक ४६२ ! ३- पंडित पूजा " ३१ । ४- कमलबत्तीसी— श्लोक ३२ । इसमें भी अध्यात्मीक उपदेश है, पांच ज्ञानका स्वरूप है, रत्नत्रयका स्वरूप है । २- माळारोहण - श्लोक १२ । ९ - उपदेश शुद्ध सार - श्लोक ५८८ । ६- ज्ञान समुच्चयसार - ९०८ । इसमें छः द्रव्य, सात तत्त्व, १४ गुणस्थान, पांच महाव्रत, सम्यग्दर्शन व्यादिका मच्छा निरूपण है । उसीमें दिगम्बर मुनिका स्वरूप है ये पंच चेल उक्तं त्यक्तं, मन वचन काय सद्भावं । विज्ञान ज्ञान शुद्धं, चेळ त्यक्तंति निव्वुए जंति ॥ ४०० ॥ दिगम्बर नयन उत्तं, दसदिशा अंबरेण सद्भावं । अम्बरं चेल विमुक्तं, दिगम्बरं ज्ञान सहकारं ॥ ४०२ ॥ भावार्थ — जो पांच प्रकार आच्छादन अर्थात् रोमके, चमड़ेके, बल्कळके, रुईके व रेशमके इनसे रहित हो, विज्ञान व ज्ञानमें शुद्ध हो। ऐसे वस्त्र रहित अचेलक ही निर्वाण जाते हैं । दिगम्बर शब्द बताता है जिनको १० दिशा जैसे आकाश वस्त्र रहित है । यह दिगम्बरपना ज्ञानका सहकारी है । कपड़ा हो। ७-ममळ पाहुड़ या अमल पाहुड़ – ३२१३ श्लोक, इसमें ३२, ११, १६, १९ नादि श्लोकोंके छोटे २ खण्ड रूपसे मध्यात्मीक भजन हैं । एक अध्याय ३४ अतिशयका है, जिनको निश्वयनय प्रधानसे बताया है । गगन गमनपर लिखा हैगगन सुनन्तानन्त जिनय जिन, गम्य अगम्य परिणाम ध्रुवं । नन्त रमन सुहज्ञान गगन जिन, गम्य अगम्य अइसय ममलं ॥ १८ ॥ भावार्थ- आकाश अनंतानंत है उसको जीतनेवाले जिन हैं अर्थात् लोकालोकके ज्ञाता हैं। गम्य-कथन योग्य, अगम्य-न ज्ञाता हैं, अनंतज्ञान में रमन करनेवाले श्रुतज्ञानके प्रकाशक नाकाशके अगम्यके ज्ञाता हैं। आकाश गमन अर्थात् निर्मल माकाश समान जनं कथन योग्य जो परिणमन सदा हुआ करता है उस सबके समान निर्मक जिन हैं । यही निर्मक अतिशय है जो गम्य aria ज्ञानमें मनागमन है परिणमन है सो आकाश गमन अतिशयके धारी है। बड़ा ही सुन्दर विवेचन है । तेरा प्रकार चारित्रको कथन करते हुए १६ श्लोक हैं। इनमें भी निश्श्रयनयका प्रधान कथन है। जैसे आदान निक्षेपण समितिको इस तरह कहा है जिसका अर्थ व्यवहारमें है कि हरएक वस्तुको देखकर उठाना रखना आद सहावेन ज्ञान रय रमनं, निक्षिपिय कम्म जिनरंज सुयं । ज्ञान विज्ञान सु अमळ रमन जिनु, भय शल्य शंक विलयंतु सूयं ॥ ५४ ॥ भूमिक ॥५॥
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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