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________________ मुमिका भूमिका (० भावार्य अपने पास्माके स्वभावके द्वारा ज्ञानमे रमन करमा सो कावासोका क्षय करना सो निक्षेपण है। इस १ तरह मिनेन्द्र में रखायमान होनेवाका श्रुत है जिसका आवम्बम करनेसे ज्ञान विज्ञान निर्मभावमें रमन होता है। लिप्त भावश्रुतमें रमन करते हुए भय, शल्य व शंका सब विला जाती है। अर्थात् बामस्वभावमै छीनता ही मादाननिक्षेपण समिति है। बहुत ४ ही बढ़िया तत्त्व विचार है। -चौबीस ठाण-गध पय सहित पत्रे १०, इसमें निश्चयनयको लेकर गोमट्टसारकी चर्चा कुछ भाग है। एक स्थानमें ६६३१६ क्षुद्र भवोंका विवरण यथार्थ गोमट्टसारके अनुसार है। जैसे एकेंद्रियके-६६१३२ भव अन्तर्मुहूर्तमे इन्द्रियकेतेन्द्रियकेचौन्द्रियके- १. " पंचेन्द्रियके- २४ " कुल ६६३३६ एक अन्तर्मुहूर्तमें जिनकी मायु श्वासके मठारहवें भाग होती है। ९-त्रिभंगीसार-श्लोक ७१ इसमें तीनर के समूह बहुतसी बातें हैं। जैसे-- १-देव गुरु शास्त्र ५-आशा स्नेह लोभ २-दर्शन ज्ञान चारित्र ६-माया मोह ममता ३–क्षायिक शुद्ध ध्रुव ७-रूपातीत स्वधर्म नाकाश १–कृतकारित अनुमत ८-नंद मानंद सहजानंद इसमें भी बुद्धिमानी व विद्वत्ता झळकती है। १.-खातिका विशेष-१ पत्रे गय व्यवहारपल्य, भवसर्पिणी, उत्सर्पिणी कालप्रमाण कुछ निश्चयनय प्रधान कथन भी है। ११-सिद्ध स्वभाव-१ पत्रा निश्चय प्रधान गद्यमें कुछ कथन है। १२-शून्य स्वभाव २ पत्रे गध। १५-नाममाला ९पत्रे गवा १४-छद्मस्थ वानी ९ पत्रे गध। RECEEGREEREGeetrelelectrGEEGee
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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