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प्रकाश
मोम || निविर्षे परंपराय कायपोषणा हो है, ता. पापकार्यनितें छुड़ाय इन कार्यनिविषे लगाईए।
है । बहुरि थोरा बहुत जेता छूटता जाने, तितना पापकार्य छुड़ाय सम्यक्त वा अणुव्रतादि | पालनेका तिनकों उपदेश दीजिए है। बहुरि जिन जीवनिकै सर्वथा आरंभादिककी इच्छा दूरि । भई, तिनकों पूर्वोक्त पूजनादिक कार्य वा सर्व पापकार्य छुड़ाय महावतादि कार्यनिका उपदेश दीजिए है। बहरि जिनके किंचित् रागादिक छूटता न जाने, तिनकों दया धर्मोपदेश प्रतिक मणादि कार्य करनेका उपदेश दीजिए है। जहां सर्वराग दूरि होय, तहां किछु करनेका कार्य ही रह्या नाहीं । तातै तिनकों किछू उपदेश ही नाहीं । ऐसा कम जानना।
बहुरि चरणानुयोगविणे कषायी जीवनिकों कषाय उपजायकरि भी पापकों छुड़ाईए है, अर धर्मविष लगाईए है। जैसे पापका फल नरकादिकके दुख दिखाय तिनकों भय कषाय । उपजाय पापकार्य छुड़ाईए है। बहुरि पुण्यका फल स्वर्गादिकके सुख दिखाय तिनकों लोभकषाय उपजाय धर्मकार्यनिविषै लगाईए है। बहुरि यह जीव इंद्रियविषय शरीर पुत्र धनादिक के अनुरागतै पाप करै है, धर्म पराङ्मुख रहै है, तातै इन्द्रियविषयनिकौं मरण कलेशादिकके कारण दिखावनेकरि तिनविषे अरतिकथाय कराईये है । शरीरादिककों अशुचि दिखावनेकरि तहां जुगुप्साकषाय कराईए है, पुत्रादिककों धनादिकके ग्राहक दिखाय तहां द्वेष कराईए है, वहुरि धनादिककों मरण कलेशादिकका कारण दिखाय, तहां अनिष्टचुद्धि कराईए है । इत्या
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