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मो.मा.
प्रकाश
दि उपाय विषयादिविषै तीव्रराग दूरि होनेकार तिनकै पापक्रिया छूटि धर्मविषै प्रवृत्ति हो | है । बहुरि नामस्मरण स्तुतिकरण पूजा दान शीलादिकत इस लोकविषै दरिद्रकष्ट दूर हो है, पुत्र धनादिककी प्राप्ति हो है, ऐसें निरूपणकरि तिनकै लोभ उपजाय तिन धर्म कार्यनिविषैलगाईए है । ऐसें ही अन्य उदाहण जानने। यहां प्रश्न - जो कोई कषाय छुड़ाय कोई कषाय करावनेका प्रयोजन कहा ? ताका समाधान --
जैसे रोग तो शीतांग भी हैं अर ज्वर भी है। परंतु कोईके शीतांगते मरण होता जाने, सहां वैद्य है सो वाकै ज्वर होनेका उपाय करै । ज्वर भए पीछे वाकै जीवनेकी आशा होय, तब पीछे ज्वरके भी मेटनेका उपाय करें । तैसें कषाय तौ सर्व ही हेय हैं, परन्तु कोई जीवनकै कषायति पापकार्य होता जानै, तहां श्रीगुरु हैं सो उनकै पुण्यकार्यकों कारणभूत कषाय होनेका उपाय करें, पीछे वाके सांची धर्मबुद्धि जाने, तब पीछे तिस कंषाय मेटनेका उपाय करें, ऐसा प्रयोजन जानना । बहुरि चरणानुयोगविषै जैसे जीवं पापकों छोड़ि धर्मविषैल, तैसे अभिप्राय लिये अनेक युक्तिकरि वर्णन करिए हैं । तहां लौकिक दृष्टान्त युक्तिकरि न्यायपद्धतिके द्वारा समझाइए है । बहुरि कहीं अन्यमत के भी उदाहरणादि दीजिए है । जैसे सूक्तमुक्तावलीविषै लक्ष्मीकौं कमलवासिनी कही, वा समुद्रविषै विष और लक्ष्मी उपजै हैं, तिस अपेक्षा विषकी भगिनी कही । ऐसें ही अन्यत्र कहिए हैं। तहाँ कोई
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