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________________ मो.मा. प्रकाश 00 ECMMolasinokran n 0 erama m मेव हो है, ताका निरूपण करिए है । बहुरि सम्यक्चारित्रके अर्थ रागादि दूरि करनेका उपदेश दीजिए है। तहां एकदेश वा सर्वदेश वीतरागादिकका अभाव भए तिनके निमित्त होती जे एकदेश सर्वदेश पापक्रिया, तातै छुटै है। बहुरि मंदरागते श्रावकमुनिनिकै व्रतनि । की प्रवृत्ति हो है । बहुरि मंदरागादिकनिका भी अभाव भएं शुद्धोपयोगकी प्रवृत्ति हो है, ताका निरूपण करिए है । वहुरि यथार्थ श्रद्धान लिए सम्यग्दृष्टीनिकै जैसे यथार्थ कोई आखड़ी हो है, वा भक्ति हो है, वा पूजा प्रभावनादि कार्य हो है, वा ध्यानादिक हो है, तिनका उपदेश दीजिए है । जैसा जिनमतविषे सांचा परंपराय मार्ग है, तैसा उपदेश दीजिए है। । ऐसे दोय प्रकार उपदेश चरणानुयोगविषे जानना । बहुरि चरणानुयोगवि तीनकषायनिका कार्य छुड़ाय मंदकयायरूप कार्य करनेका उपदेन दीजिए है । यद्यपि कयाय करना बुरा ही है, तथापि सर्वकषाय न छूटते जानि जेता काप घटे वितना ही भला होगा, ऐसा प्रयोजन तहां जानना । जैसे जिनि जीवनिकै आरंभादि करनेकी वा संदिरादि बनावरेकी वा विषय सेवनेकी वा क्रोधादि करनेकी इच्छा सर्वथा दूरि न होती जाने, तिनको पूजा प्रभावनादिक करनेका वा चैत्यालयादि बनावनेका वा जिनदेवादिककै आगे शोभादिक नृत्य गानादिकरनेका वा धर्मात्मा पुरुषनिकी सहायादि। करनेका उपदेश दीजिये है। जातै इनविष परंपराय कषायनिका पोषण न हो है । पापका Namasssmasaamaanaamanamania cookSCO0F8C050001pEROOOCTOoEcropofooxcook-00
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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