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________________ - - - मो.मा. चीस दोष न लगावने, निःशंकिताद्रिक अंग अथवा संवेगादिक गुण पालने, इत्यादिक उपदेश प्रकाश दीजिए है । बहुरि सम्यग्ज्ञानके अर्थ जिनमतके शास्त्रनिका अभ्यास करना, अर्थ व्यंजनादि अंगनिका साधन करना, इत्यादि उपदेश दीजिए है । बहुरि सम्यक्चारित्रकै अर्थ एकोदेश। सबोंदेश हिंसादि पापनिका त्याग करना, व्रतादि अंगनिकों पालने इत्यादि उपदेश दीजिए। है। बहुरि कोई जीवकों विशेष धर्नका साधन न होता जानि, एक श्राखडी आदिकका ही | उपदेश दीजिए है । जैसे भीलकों कागलाका मांस छुड़ाया, गुवालियाकों नमस्कार मंत्र जपनेका उपदेश दिया, गृहस्थकों चैत्यालय पूजा प्रभावनादि कार्यका उपदेश दिया, इत्यादि | जैसा जीव होय, ताकौं तैसा उपदेश दीजिए है । बहुरि जहां निश्चयसहित व्यवहारका उप# देस होय, तहां सम्यग्दर्शनके अर्थ यथार्थ तत्वनिका श्रद्धान कराईये है। तिनका जो निHश्चय स्वरूप है, सो भूतार्थ है। व्यवहारस्वरूप है, सो उपचार है । ऐसा श्रद्धान लिए वा खपरका भेदविज्ञानकरि परद्रव्यनिषै रागादि छोड़नेका प्रयोजन लिए तिन तत्वनिका श्रद्धान करनेका उपदेश दीजिए है । ऐसे श्रद्धानतै अरहंतादिविना अन्य देवादिक झूठ भासे, तब स्वयमेव तिनका मानना छूट है, ताका भी निरूपण करिए है । बहुरि सम्यग्ज्ञानके अर्थ संशयादिरहित तिनही तस्वनिका तैसे ही जाननेका उपदेश दीजिए है, तिस जाननेकों कारण । जिनशास्त्रनिको अभ्यास है । ताते तिस प्रयोजनकै अर्थ जिनशास्त्रनिका भी अभ्यास स्वय- ४२५ o licio-orderdcool1000 ROMoroc00-183f00KGooctor YMOOOofasroopcrookacgooECHNO38001ECrookecook005MOONACOOMBHOofacROORCFootpatroDEMORRIGroora * 180 000000000005300030
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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