SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 888
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रकाश मो.मा. अथवा कर्मशक्ति हीन होय जाय, तो मोक्षमार्गौं भी प्राप्त होय जाय । ताते व्यवहार । उपदेशकरि पापते छुड़ाय पुण्यकार्यनिविषे लगाईए है । बहुरि जे जीव मोक्षमार्गकों प्राप्त । भए वा प्राप्त होने योग्य हैं, तिनका ऐसा उपकार किया जो उनकों निश्चयसहित व्यवहारका उपदेश देय मोक्षमार्गविषै प्रवर्ताए । श्रीगुरु तो सर्वका ऐसा ही उपकार करें । परंतु जिन जीवनिका ऐसा उपकार न बनें, तो श्रीगुरु कहा करें। जैसा बन्या तैसा ही उपकार किया । ताते दोय प्रकार उपदेश दीजिये है। तहां व्यवहारविषै तो बाह्य क्रियानिहीकी प्रधानता || है। तिनका तौ उपदेशनै जीव पापक्रिया छोड़ि पुण्यक्रियानिविर्षे प्रवर्ते । तहां क्रियानिकै अनुसार परिणाम भी तीवकषाय छोड़ि किछु मंदकषायी होय जांय । सो मुख्यपर्ने तो ऐसे | है । बहुरि काहूकें न होय, तो मति होहु । श्रीगुरु तो परिणाम सुधारनेके अर्थ बाह्यक्रियानि कौं उपदेशै हैं । बहुरि निश्चयसहित व्यवहारका उपदेशविौ परिणामनिहींकी प्रधानता है। | ताका उपदेशते तत्वज्ञानका अभ्यासकरि वा वैराग्य भावनाकरि परिणाम सुधारे, तहां परि| णामकै अनुसार बाह्यक्रिया भी सुधरि जाय । परिणाम सुधरे वाह्यक्रिया भी सुधरे ही सुधरै । तात श्रीगुरु परिणाम सुधारनेकों मुख्य उपदेशैं हैं । ऐसें दोय प्रकार उपदेशविर्षे व्यवहा-|| रहीका उपदेश होय । तहां सम्यग्दर्शनके अर्थ अरहंत देव, निग्रंथ गुरु, दया धर्मकों ही मा- ४२४ नना । बहुरि जीवादिक तत्वनिका व्यवहारस्वरूप कह्या है, ताका श्रद्धान करना, शंकादि प..
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy