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मो.मा. दिक अखंडित हैं, तथापि छद्मस्थकों हीनाधिक ज्ञान होनेके अर्थ प्रदेश समय अविभागप्रतिप्रकाश
॥ च्छेदादिककी कल्पनाकरि तिनका प्रमाण निरूपिए है । बहुरि एक वस्तुविर्षे जुदे-जुदे गुण
निका वा पर्यायनिका भेदकरि निरूपण कीजिए है। बहुरि जीव पुद्गलादिक यद्यपि भिन्न । भिन्न हैं, तथापि सम्बन्धादिककरि वा द्रव्यकरि निपज्या गति जाति आदि भेद तिनकों एक
जीवके निरूपे हैं, इत्यादि व्यवहार नयको प्रधानता लिए व्याख्यान जानना । जाते व्यवहार | विना विशेष जानि सके नाहीं। बहुरि कहीं निश्चयवर्णन भी पाईए है । जैसें जीवादिक द्रव्य- 11 निका प्रमाण निरूपण किया, सो जुदे जुदे इतने ही द्रव्य हैं । सो यथासंभव जानि लेना ।। बहुरि करणानुयोगविषै कथन है, ते केई तो छश्नस्थकै प्रत्यक्ष अनुमानादिगोचर होंय, बहुरि जे न होंय तिनकों आज्ञा प्रमाणकरि ही मानने । जैसे जीव पुद्गलके स्थूल बहुतकालस्थायी मनुष्यादि पर्याय वा घटादि पर्याय निरूपण किए, तिनका तो प्रत्यक्ष अनुमानादि होय सकै, बहुरि समय समयप्रति सूक्ष्म परिणमन अपेक्षा ज्ञानादिकके वा स्निग्ध सूक्ष्मादिकके अंश निरूपण किए, ते आज्ञाहीते प्रमाण हो हैं। ऐसे ही अन्यत्र जानना। बहुरि करणानुयोगविणे
छद्मस्थनिकी प्रवृत्तिकै अनुसार वर्णन नाहीं । केवलज्ञानगम्य पदार्थनिका निरूपण है। जैसे 1 केई जीव तौ द्रव्यादिकका विचार करें हैं, वा व्रतादिक पाले हैं, परंतु अन्तरंग सम्यक्त चारि
त्रशक्ति नाही, ताते उनको मिथ्यादृष्टि, अवती कहिए है । बहुरि केई जीव द्रव्यादिकका का
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