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________________ प्रकाश मो.मा.वतादिकका विचार रहित हैं, अन्य कार्यनिविषे प्रवत्त हैं, वा निद्रादिकरि निर्विचार होय रहे। हैं, परंतु उनके सम्यक्तादि शक्तिका सद्भाव है, ताते उनको सम्यक्ती वा व्रती कहिए है। ब-11 । हुरि कोई जीवके कषायनिकी प्रवृत्ति तो धनी है, अर वाकै अन्तरंग कषायशक्ति थोरी है, तो वाकों मंदकषाई कहिए है । अर कोई जीवकै कषायनिकी प्रवृत्ति तो थोरी है, अर वाकै अन्तरंग कषायशक्ति घनी है, तो वाकों तीब्रकषायी कहिए है । जैसें व्यन्तरादिक देव कषायनितें नगरनाशादि कार्यकरें, तो भी तिनकै थोरी कषायशक्तिते पीतलेश्या कही । बहुरि एकेंद्रियादि जीव कषायकार्य करते दीखें नाही, तिनकै घनीशक्तिते कृष्णादि लेश्या कहीं। बहुरि सर्वार्थसिद्धि के देव कषायरूप थोरे प्रवर्ते, तिनकै बहुत कषायशक्तिते असंयम कह्या, अर पंचम । गुणस्थानी व्यापार अब्रह्मादि कषायकार्यरूप बहुत प्रवर्ते, ताकै मंदकषायशक्तितै देशसंयम| कह्या । ऐसे ही अन्यत्र जानना । बहुरि कोई जीवकै मन वचन कायकी चेष्टा थोरी होती दीसे, ।। तो भी कर्माकर्षण शक्तिकी अपेक्षा बहुत योग कहा । काहुके चेष्टा बहुत दीखें, तो भी शक्ति की हीनताः स्तोकयोग कह्या । जैसें केवली गमनादिक्रियारहित भया, तहां भी ताके योग बहुत कह्या । बेंद्रियादिक जीव गमनादि करें हैं, तो भी तिनके योग स्तोक कहे, ऐसे ही अन्यत्र जानना । बहुरि कहीं जाकी व्यक्त तो किछु न भासे, तो भी सूक्ष्मशक्तिके सद्भावतें ताका तहां अस्तित्व कह्या । जैसें मुनिकै अब्रह्मकार्य किछू नाहीं, तो भी नवम गुणस्थानपर्यंत DSPostroloor260000000000020-2800100cogo 6000000000000000000000000001 1630001000sorrhotoof00878000-4388003800-306800496001000000000000000000
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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