SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 880
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ । मा. प्रकाश ग्यतका उपचार किया, ऐसें उपचारकरि सम्यक्त भया कहिए। बहुरि कोई जैनशास्त्रका एक अंग जाने सम्यग्ज्ञान भया कहिए है, सो संशयादिरहित तत्वज्ञान भए सम्यग्ज्ञान होय, परंतु पूर्ववत् उपचारकारे कहिए। वहुरि कोई भला आचरण भए सम्यक्चारित्र भया कहिए है। तहां | जाने जैनधर्म अंगीकार किया होय, या कोई छोटी मोटी प्रतिज्ञा गृही होय, ताको श्रावक कहिए, सौ श्रावक तौ पंचमगुणस्थानवर्ती भए हो हैं । परंतु पूर्ववत् उपचारकरि याकौं श्रावक कया है । उत्तरपुराणविष श्रेणिककों श्रावकोत्तम कह्या, सो वह तो असंयत था । परन्तु जैनी था, ताते कह्या । ऐसे ही अन्यत्र जानना । वहुरि जो सम्यक्तरहित मुनिलिंग धारे, वा कोई द्रव्यां भी अतीचार लगावता होय, ताकी मुनि कहिए । सो मुनि तौ षष्ठादि गुणस्थान- | वर्ती भए हो है । परंतु पूर्ववत् उपचारकरि मुनि कह्या है । समवसरणसभावि मुनिनिकी | संख्या कही, तहां सर्व ही भावलिंगी मुनि न थे, परंतु मुनिलिंग धारनेते सबनिकौं मुनि | कहे । ऐसे ही सर्वत्र जानना । बहुरि प्रथमानुयोगविणे कोई धर्मबुद्धितै अनुचित कार्य करे, | ताकी भी प्रशंसा करिए है । जैसे विणुकुमार मुनिनिका उपसर्ग दुरि किया, सो धर्नानुरा गते किया, परंतु मुनिपद छोडि यह कार्य करना योग्य न था। जाते ऐसा कार्य तो | गृहस्थधर्मविषै संभवै अर गृहस्थधर्मते मुनिधर्म ऊंचा है । सो ऊंचा धर्मकों छोड़ि नीचा धर्म अंगीकार किया, सो अयोग्य है । परंतु वात्सल्य अंगको प्रधानताकरि विष्णुकुमारजीकी
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy