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________________ मो.मा. प्रकाश पाप नाहीं है । एक मिथ्यात्व अर ताके साथ अनंतानुबंधीका अभाव भए इकतालीस प्रवतिनिका तो बंध ही मिट जाय । स्थिति अन्तकोटाकोटी सागरकी रह जाय । अनुभाग थोरा ही रह जाय । शीघ्र ही मोक्षपदकों पावै । बहुरि मिथ्यात्वका सद्भाव रहें अन्य अनेक || | उपाय किए भी मोक्ष न होय । ताते जिस तिस उपायकरि सर्व प्रकार मिथ्यात्वका नाशः | करना योग्य है। इति मोक्षमार्गप्रकाशनाम शास्त्रवि जैनमतवाले मिथ्यादृष्टीनिका निरूपण जामें ऐसा सातवाँ अधिकार सम्पूर्ण भया ॥ ७॥ •BIOMEGENROOO0120100500000000000000000000000000000000000106leokMOHIRONOMETRokay . अथ मिथ्यादृष्टी जीवनिकों मोक्षमार्गका उपदेश देय तिनको उपकार करना यह ही। उत्तम उपकार है । तीर्थंकर गणधरादिक भी ऐसा ही उपाय करें हैं। ताते इस शास्त्रविणे भी उनहीका उपदेशकै अनुसारि उपदेश दीजिए है। तहां उपदेशका स्वरूप जाननेके अर्थ | किछु ब्याख्यान कीजिए है । जातें उपदेशकौं यथावत् न पहिचाने, तौ अन्यथा मानि विपरीत प्रवत्ते, तातें उपदेशका खरूप कहिए है| जिनमतविष उपदेश च्यारअनुयोगका दिया है । सो प्रथमानुयोग करणानुयोग चरणानुयोग द्रव्यानुयोग ए च्यार अनुयोग हैं। तहां तीर्थंकर चक्रवर्ती आदि महान् पुरुषनिके च ०७
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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