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________________ भो.मा. प्रकाश उदय कौनका भावे । तातै मिथ्यात्वको उदय न होनेते प्रथमोपशम सम्यक्तकी प्राप्ति हो | है | अनादि मिथ्यादृष्टीकै सम्यक्तमोहनीय मिश्रमोहनीयकी सत्ता नाहीं है । तातें एक मिथ्यास्वकर्महीको उपशमाय उपशमसम्यग्दृष्टी हो है । बहुरि कोई जीव सम्यक्त पाय पीछें भ्रष्ट हो है, ताकी भी दशा अनादि मिथ्यादृष्टीकी सी ही होय जाय है । यहां प्रश्न - जो परीक्षाकरि तत्वान किया था, ताका अभाव कैसे होय । ताका समाधान जै किसी पुरुष शिक्षा दई, ताकी परीक्षाकरि वाकै 'ऐसेही है' ऐसी प्रतीतिभी आईथी, पीछे अन्यथा कोई प्रकारकरि विचारभया, तातैं उसशिक्षाविषै संदेहभया । 'ऐसे हैं कि ऐसे हैं' अथवा 'न जानों कैसे है' अथवा तिसशिक्षाको झूठजानि तिसतै विपरीत भई । तबवाकै प्रतीत न भई तब वाकै तिस शिक्षाकी प्रतीतिका अभाव होय, अथवा पूर्वै तौ अन्यथा प्रतीति थी ही, बीचिमें शिक्षाका विचारतें यथार्थ प्रतीति भई थी, बहुरि तिस शिक्षाका विचार किए बहुतकाल होय गया, तब ताक भूलि जैसें पूर्वै अन्यथा प्रतीत थी, तैसें ही स्वमेव होय गई । तब |तिस शिक्षाकी प्रतीतिका अभाव होय जाय । अथवा यथार्थ प्रतीति पहलें तौ कीन्हीं, पीछे न तौ किछू अन्यथा विचार किया, न बहुत काल भया । परंतु तैसा ही कर्म उदयतें होनहार के अनुसार स्वयमेवही तिस प्रतीतिका अभाव होय, अन्यथापना भया । ऐसें अनेक प्रकार तिस शिक्षाकी यथार्थ प्रतीतिका अभाव हो है । तैसें जीवकै जिनदेवका तत्त्वादिरूप उपदेश ***** ४०३
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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