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________________ प्रकाश मो.मा. भाव होय, तहां तत्वविचार होय सके, सो विशुद्धलब्धि है । बहुरि जिनदेवका उपदेश्या तत्व का धारण होय, विचार होय, सो देशनालन्धि है । जहां नरकादिविषै उपदेशका निमित्त न । होय, तहां पूर्वसंस्कारते होय । बहुरि कर्मनिकी पूर्वसत्ता घटकरि अन्तःकोटाकोटी सागर प्र. माण रहि जाय, अर नवीनबंध अंत:कोटाकोटी प्रमाण ताकै संख्यातवें भागमात्र होय, | सो भी तिस लब्धिकालते लगाय क्रमते घटता होय, केतीक पापप्रकृतिनिका बंध क्रमते मि-11 टता जाय, इत्यादि योग्य अवस्थाका होना, सो प्रायोग्यलब्धि है । सो ए च्यारों लब्धि भव्य || वा अभव्यकै होय हैं, इन च्यारलब्धि भए पीछे सम्यक्त होय तो होय, न होय तो नहीं भी। होय । ऐसें लब्धिलारविर्षे कया है। ताते तिस तत्वविचारवालाकै सम्यक्त होने का नियम नाहीं । जेसे काहूको हितकी शिक्षा दई, ताकौं वह जानि विचार करे, यह सीख दई सो। । कैसे है। पीछे विचारतां वाकै ऐसे ही है, ऐसी प्रतीति होय जाय । अथवा अन्यथा विचार | होय, वा अन्य विचारविषे लागि तिस सीखका निर्धार न करे, तो प्रतीत नाहीं भी होय । तैसे। श्रीगुरां तत्वोपदेश दिया, तार्को जानि विचार करे, यह उपदेश दिया, सो केसे है। पीछे विचार करनेते वाकै ‘ऐसें ही हैं' ऐसी प्रतीति होय जाय। अथवा अन्यथा विचार होय, वा अन्य विचारविषै लागि तिस उपदेशका निर्धार न करे, तो प्रतीति नाहीं होय । ऐसा नियम || है । याका उद्यम तो तत्वविचारका करने मात्र ही है । बहुरि पांचई करणलब्धि भए सम्यक्त -RAHIROWEBARODY ORRNORF EXP0260020200.00 mismaAAMARA BOORoomsioH0-000-150.YO.1013-10 ३६६ -
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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