________________
मो.माप्रकाश
होय ही होय, ऐसा नियम है । सो जाकै पूर्व कही थीं च्यारि लब्धि ते तो भई होय अर अ. तर्मुहूर्त पीछे जाकै सम्यक्त होनो होय, तिसही जीवके करणलब्धि हो है । सो इस करणलः ।। ब्धिवालाकै बुद्धिपूर्वक तौ इतना ही उद्यम हो है-जिस तत्वविचारविर्षे उपयोगकों तद्रूप होय । लगायें, ताकरि समय समय परिणाम निर्मल होते जाय हैं । जैसें काहूकै सीखका विचार ऐसा निर्मल होने लग्या, जाकरि याकै शीघ्र ही ताकी प्रतीति होय जासी। तैसें तत्वउपदेश ऐसा निर्मल होने लग्या, जाकरि याकै शीघ्र ही ताका श्रद्धान होसी। बहुरि इन परिणामनिका, | तारतम्य केवलज्ञानकरि देख्या, ताकरि निरूपण करणानुयोगविर्षे किया है । सो इस करणलब्धिके तीन भेद हैं-अधःकरण, अपूर्वकरण, अनिवृत्तिकरण । इनका विशेष व्याख्यान तो लब्धिलार शास्त्रवि किया है, तिसतें जानना । यहां संक्षेपसों कहिए है
त्रिकालवी सर्घ करणलब्धिवाले जीव तिनके परिणामनिकी अपेक्षा ए तीन नाम हैं। | तहां करण नाम तो परिणामका है । बहुरि जहां पहले पिछले समयनिके परिणाम समान | होय, सो अधःकरण है । जैसे कोई जीवका परिणाम तिस करणके पहिले समय स्तोक विशुद्धता लिए भए, पीछे समय समय अनंतगुणी विशुद्धताकरि वधते भए । बहुरि वाकै जैसे द्वितीय तृतीयादि सनयनिविषे परिणाम होय, तैसें केई अन्य जीवनिकै प्रथम समयविर्षे हो। होथ । ताके तिसते समय समय अनंती विशुद्धताकरि पधते. होय । ऐसें अधःप्रवृत्तकरण । १००