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मो.मा.
प्रकाश
दिक तपश्चरणादि करे, ताकै तौ सम्यक्त होनेका अधिकार नाहीं। अर तत्त्वविचारवाला इन विना भी सम्यक्तका अधिकारी हो है । बहुरि कोई जीवके तत्वविचारकै होने पहले किसी का. | रण पाय देवादिककी प्रतीति होय, वा व्रत तपका अंगीकार होय, पीछ तत्वविचार करे। प. रंतु सम्यक्तका अधिकारी तत्वविचार भए ही हो है । बहुरि काहूकै तत्वविचार भए पीछे तत्वप्रतीति न होनेते सम्यक्त तो न भयो । अर व्यवहारधर्मकी प्रतीति रुचि होय गई तातें देवादिककी। प्रतीति करें है, वा व्रत तपकों अंगीकार करै है। काहुकै देवादिककी प्रतीति पर सम्यक्त युग-11 पत् होय, अर व्रत तप सम्यक्तकी साथि भी होय, वा न भी होय, देवादिककी प्रतीतिका तौ। नियम है । इस विना सम्यक्त न होय। ब्रतादिकका नियम है नाहीं। घने जीव तो पहले।
सम्यक्त होय पीछे ही ब्रतादिकौं धारे हैं। काहूकै युगपत् भी होय जाय है । ऐसें यह तत्व-11 | विचारवाला जीव सम्यक्तका अधिकारी है। परंतु याकै सम्यक्त होय ही होय, ऐसा नियम | नाहीं। जाते शास्त्रविष सम्यक्त होनेते पहले पंचलब्धिका होना कह्या है----क्षयोपशम, वि-12
शद्धि, देशना, प्रायोग्य, करण । तहां जिसकों होतसंत तत्त्वविचार होय सकै, ऐसा ज्ञानावर| णादि कर्मनिका क्षयोपशम होय । उदयकालकों प्राप्त सर्वघाती स्पर्द्धकनिके निषेकनिका उदय
का अभाव सो क्षय, अर अनागतकालविष उदय आवने योग्य तिनहीका सत्तारूप रहना सो उपशम, ऐसी देशघाती स्पर्द्धकनिका उदय सहित कर्मनिकी अवस्था ताका नाम क्षयोपशम है। ताकी प्राप्ति सो चयोपशमलब्धि है । बहुरि मोहका मंद उदय श्रावनेते मंदकषायरूप