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________________ मोमाः । सो अप्रयोजनविर्षे झूठ काहेकों बोले । तातें ज्ञेयतत्वनिका परीक्षाकरि भी वा आज्ञाकरि स्वप्रकाश रूप जानिए । तिनका यथार्थ स्वरूप न भासे, तो भी दोष नाहीं । याहीसे जैनशास्त्रनिविषे तत्वादिकका निरूपण किया, तहां तो हेतुयुक्ति आदिकरि जैसें याकै अनुमानादिकरि प्रतीति ।। आवै, तैसें कथन किया। बहुरि त्रिलोक गुणस्थान मार्गणा पुराणादिकका कथन आज्ञा अनुसार किया । तातें हेयोपादेय तत्वनिकी परीक्षा करनी योग्य है। तहां जीवादिक द्रब्य वा । तत्व तिनको पहचानना । बहुरि त्यागने योग्य मिथ्यात्व रागादिक अर ग्रहणे योग्य सम्यग्द-/ र्शनादिक तिनका स्वरूप पहचानना। बहुरि निमित्त नैमित्तादिक जैसे हैं, तैसें पहचानना ।। ॥ इत्यादि मोक्षमार्गविषै जिनके जाने प्रवृत्ति होय, तिनकों अवश्य जाननै । सो इनकी तो परीक्षा करनी । सामान्यपर्ने हेतुयुक्तिकरि इनकौं जानने, वा प्रमाण नयनिकरि जानने, वा निर्देश खाम्यत्वादिकरि, वा सत् संख्यादिकरि इनका विशेष जानना । जैसी बुद्धि होय जैसा निमित्त वने, तैसें इनकों सामान्य विशेषरूप पहचाननै । बहुरि इस जाननैका उपकारी गुणस्थानमार्गणादिक वा पुराणादिक वा व्रतादिक क्रियादिकका भी जानना योग्य है । यहां परीक्षा होय सके, तिनकी परीक्षा करनी, न होय सकै ताका आज्ञा अनुसारि जानपना करना । ऐसें इस जाननेके अर्थ कबहू आपही विचार करें है, कबहू शास्त्र बांचे है, कबहू सुने है, कबहू अभ्यास करें है, कबहू प्रश्नोत्तर फरे है । इत्यादिरूप प्रवर्ते है । अपना
SR No.600387
Book TitleTarantaran Shravakachar evam Moksh Marg Prakashak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTaranswami, Shitalprasad Bramhachari, Todarmal Pt
PublisherMathuraprasad Bajaj
Publication Year1935
Total Pages988
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size30 MB
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