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मो.मा प्रकाश
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परीक्षा कर लेनी । जाते इनविषै अन्यथाम्नों भए अपना बुरा हो है । उपादेयकों हेय मानि | ले, तो बुरा होय, हेयकों उपादेय मानि ले, तो बुरा होय । बहुरि जो कहोगे, आप परीक्षा न करी, अर जिनवचनहीतै उपादेयकों उपादेय जाने, हेयकों हेय जाने, तो कैसे बुरा होय । ताका समाधान.. अर्थका भाव भासे विना वचनका अभिप्राय न पहिचाने । यह तो मानि ले, जो में जिन-1 वचन अनुसार मानों ही परंतु भाव भाले बिना अन्यथापनो होय जाय। लोकविर्षे भी किंकरकौं किसी कार्यको भेजिए, सो वह उस कार्यका भाव जानै, तो कार्यको सुधार, जो भाव न भासे, तो कहीं चूकि ही जाय । तातै भाव भासनेके अर्थि हेय उपादेय तत्वनिकी परीक्षा अवश्य करनी । बहुरि वह कहे है जो परीक्षा अन्यथा होय जाय, तो कहा करिए। ताका
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समाधान--
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जिनबचन अर अपनी परीचा इनकी समानता होय, तब तो जानिए सत्य परीक्षा भई।। यावत् ऐसे न होय तावत् जैसे कोई लेखा करै है, ताकी विधि न मिले तावत् अपनी चूककों ।। है । तैसे यह अपनी परीक्षाविषै विचार किया करै । बहुरि सो ज्ञेयतत्व हैं, तिनकी परीक्षाः होय सके, खौ परीक्षा करै । नाहीं, यह अनुमान करें, जो हेय उपादेय तत्व ही अन्यथा म कहै, तो ज्ञेयतत्व अन्यथा किस अर्थ कहें । जैसे कोऊ प्रयोजनरूप कार्यनिविषे झूठ न बोच्चै,
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